SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [३] [2303] सं० १४७७ ३० फा व० १ श्रीमालवंशे ....."गोत्रे गए कामा नार्या मानी......... कारिता..... श्री.ज"राजसूरिपट्टे जिनचं सूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ [23041 सं० १४ए वैशाखसुदि ३ श्रीब्रह्माणगडे सूनेधना श्रीश्रीमा० व्यव सायरका रोक सुत देवसीपर्वतडूंगरराघवदेव केन पित्रोः श्रेयसे नोविमलनाथवियं का प्रतिष्ठित श्री. पजूनसूरिनिः ॥ [2305] ॥ सं० १धनए वर्षे फा० सुत्र ३ शुक्रे श्रीमाली श्रेण लाइण नाग मंदोगरि पु० कया केडा सुप्ता मरगाद (?) पितृमातृश्रेयोर्थं श्रोसंनवनाविधं का प्रतिष्ठितं श्रीपूर्णिमागछे श्रीसाधुरत्नसूरिभिः॥ [2306] सं० १४ए० वर्षे वैशाखसुदि ए शनों प्रा व्य० पांदा पुत्र बाहडेन वि श्रीचंप्रनस्वामि का सारा पूरा श्रीहीराणंदसूरीणामुपदेशेन । [ 2307] ॥ सं० १४एर वा वैशाखब० ११ शुक्रे उपए पितृ 0 कूपा मातृ कमलादेप्रेयसे पुत्र मामसीवांचाचुंडाकैः श्रीवासपूज्य पंचतीरथी कारापितं प्र० संडेरगजे श्रीशांतिसूरिचिः॥श्री। [2308] ॥ संग १४एर वर्षे मार्ग० वदि ५ गुरौ श्रीपंडेरकीयगछे का ज्ञाप सा पूनसी पुणरांमा 19 "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009680
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy