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________________ [ ५० ] (४३) दिकनी कमठा सं० सहसमल सं० करणा सं०धरणा कराविस्य ॥ इत्येषा प्रश तिः श्रीवृरखरतरगष्ठे श्री जि (४४) नहंससूरिपालंकारश्री जिनमाणिक्यसूरिविजविराज्ये श्रीदेव तिलकोपाध्यायेन लिखिता चिरं नंदतु || (४५) सूत्रधार मनसुख पुत्र सूत्रधारषेताकेन मुदकारि प्रशस्तिरेषा कोरीतं ॥ : ॥ श्री तु # पट्टक पर [ 2155] ॥ सं० १५८५ वर्षे माघमासे श्रीजेसलमेरुमहादुर्गे श्रीजयतसिंह राउल पट्टालंकार श्रीलूणकर्णराज विजयिराज्ये श्रीशंखवाल गोत्रे सं० कोचर पुत्र सं० मूल पुत्र सं० रोला पुत्र सं० त्र्यापमल्ल पुत्र सं० पेथा पुत्र सं० श्रासराज नार्या गेल्ही पुत्र सं खेता सं० ( जा० ) सरसनी पुत्र सं० दीवा जाय सं० मरादे सं० विमलादे पुत्र सं० सहसमल जाय सं० कुरी पुत्र सं० जोला द्वितीय चार्या सं० सवीरदे पुत्र डाहा सं करण जार्या सं० कनकादे पुत्र सं खीदा सं० नरसिंह पुत्र सं धरखा जाय घराणगदे संघ प्रमुख परिवारसहितया संवीदा ... ० (मलादे श्राविकायाः पुण्यार्थं श्री शत्रुंजयमदातीर्थ श्री गिरनारतीर्थपट्टिका श्रष्टमांगलिक्ययुता सं० सहसमल सं० धरणाच्यां काशपिता श्रीवृहत् खरतरगने श्री जिनजद्र सूरिपट्टे श्री जिनचंद्रसूरिपट्टे श्री जिनसमुद्रसूरिपट्टे श्री जिनदंससू रिपद्दालंकारश्री जिनमा णिक्यसूरिराज्ये प्रतिष्ठिता श्रीदेवतिकोपाध्यायेन लिप । कृता प्रशस्तिरेषा चिरं नंदतुष् सूत्रधार धाना पुत्र से सूत्रधारेण प्रशस्तिरुदकारि० श्री शत्रुंजय गिरनारती श्रवितारराटी घटिता | श्रीसंपेन जात्कार्यमाणा पूज्यमाना चिरं नंदतु ॥ "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009680
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size20 MB
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