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________________ परत संसारी जे जे प्राणीया, जबथित पाकी रि जास । सो तेहिज ए तोरथ जेटन तणो, आणे अंग उल्लास ॥ सो० धन० १० पूरव संचित पुण्य तणे उदै, अम्हे पिण दरशन आज । सो पार्यो तेह सुहायौ चित्त में, जिम चातक धन आज ॥ सो धन ११ सुप्रसन आम्ह सु थाज्यौ साहिवा, करिज्यौ नित जयकार । सो आम्हर्नु सगली बाते आपरौ, अविहन एक आधार ॥ सोप धन १५ इम नगर जैसलमेरु परिसर, तीर्थ लोकपुर वरौ । जिहां पास चिन्तामणि सुहकर, जिनवर सिरतिलौ ॥ संवत अवारै सतर (२०१५) मगसिर, बहुल पञ्चमि ने दिने । जिनशान सूरि जिणंद नेट्या, हरष धरि बहु शुज मनें ॥ धन १३ इति श्री जिनलाभ सूरि विरचित श्री लोद्रवपुर पार्श्वजिन स्तवन संपूर्ण । "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009680
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size20 MB
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