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________________ ( २५ ) [1131 ] संवत् १५६ए वर्षे आषाढ़ शुदि र मेडतवाल गोत्र सा इसा ना मील्हा पुत्र तान्हा जार्या तिलसिरि स्वपितृश्रेयसे श्री पार्श्वनाथ विंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री मलधारि गच्छे श्री लक्ष्मीसागर सुरिनिः। [1132 ] सं० १६५५ माइ सुदि १० श्री मूलसंघे ना श्री प्रजचन्द्र देवा तत्पट्टे जा श्री चन्द्र कीर्चि तदानाये चंदवाड़ गोत्रे सं० चाहा पुत्र तेजपाल पुत्र केसै। सुरताण श्रीवंत नित्य प्रणमंति मालपुर वास्तव्य ॥ जयपुर। श्री सुणर्श्वनाथजी का पञ्चायती बड़ा मन्दिर । पंचतीर्थयों पर। [ 1133] सं० १३३५ वर्षे ज्येष्ठ वदि १ गुरौ व्य० महीधर सुत कांऊन आत्मश्रेयोर्थ श्री पार्श्वनाथ विध कारित प्रतिष्ठित सूरिभिः । [ 11341 ॐ सं० १३४० वर्षे ज्येष्ठ सु० १३ रवौ गूर्जर ज्ञातीय व राजड़ सुत महं देव्हणेन पितृव्य वीरम श्रेयसे श्री पार्श्वनाथ वि कारितं प्रतिष्ठितं श्री चैत्रगछिय श्री देवप्रन सुरि सन्ताने श्री अमरना सूरि शिष्यैः श्री अजितदेव सूरिभिः । [1135 ] सं० १३ए० वर्षे माघ सुदि १३ सोमे श्री काष्ठासंघे श्री लाडवा गएरुगणे श्रीमत् "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009679
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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