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________________ शिला लेख नंग [1018 ] * (१) अत्यद्भुतं सऊनसिद्धिदायकं जव्यांगिना (२) मोदकर निरन्तरं जिनालये रङ्गपुरे मनोहरे चं (३) अप्रनं नौमि जिनं सनातनं ॥ १ ॥ संवत् १ए (४) ३२ शाके १७ए मिति आषाढ़ सुदि ए चन्छवासरे (५) रङ्गापुरे । न । श्रीजिनहंस सूरीजी विजे राज्ये ॥ श्री (६) हंसविलास गणि तत्शिष्य श्री कनकनिधान मुनि (७) रुपदेशेन । श्रीमादावाद बाखूचर वास्तव्य । (७) दूगड़ चन्द्रजी जीर्णोद्धार कारापितं ॥ नाहटा मौ (ए) जीरामजी तत्पुत्र नाहटा गुलाबचन्दजी तत्पुत्र इन्स (१०) चन्द्रजी मारफत श्री चन्द्रप्रन जिन प्रासादस्य सिषरं (११) नवीन रचिता वेदका नवीन निजव्यै कारपितं ॥ प्रति (१५) ष्ठितं विधिना सतां कल्याण वृष्ट्यर्थम् ॥ १॥ (१३) ॥ मिस्तरी पोलाराम सिलावट लालू मक्सूदका मूल नायक की पाषाण की मूर्ति पर । [1010] संवत् १७७३ वर्षे "सुदि दिने""श्रीचन्द्रप्रन विवमिदं प्रतिष्ठितं जा श्रीजिनहर्ष सूरि कारापितं शीलचन्छन । बालूचर मध्ये । पाषाण की मूर्तियों पर। ___[1020] संवत् १९३६ मिती आ..."शुक्रवारे यु । प्र० श्री...जी विजयराज्ये श्री शान्ति जिन कारापितं आणन्दवनजी तत् शिष्य.प्रतिष्ठितं । * यह मिर्जापूरी पत्थर पर खुदा हुआ न० १ के समान साइज का बायें तर्फ दीवार पर लगा हुआ है। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009679
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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