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________________ [2056] सं० १४१ वा मार्ग सु० ५ बार चतुर नाम्ना श्री संखेश्वरपार्श्व वि का प्र० तपा श्री विजयहर्ष सूरिनिः॥ [20571 सं० १६६७ वर्षे फागुण सुदि सोमे श्रीमाल ज्ञातीय सा सूरज कुटुंबयुतेन श्री शांतिम बिंद कारितं प्रतिष्ठितं श्री तपा गछे जट्टारक श्री विजयदेव सूरिनिः॥ 2058 ]. सं० १६ए 40 का सु० ५ गुरो दौखत्तीमाद ज झा सा श्रीमंत चापमाबाई नाम श्री शांतिनाथ बिंबं का प्र० तपा गो . . . . . . । 2059] सं० १६ए फाय सु० ५ वृ० उकेश वा धीरा नाम्नी श्री शांति बिंद का प्र श्री तपा गछे विजयदेव सूरिनिः॥ F20001 सं० १७०१ (?) व मार्ग सुद० ५ वा बृ० प्रा० बा० कानू नाम्ना श्री पाश्र नाथ बिंग का प्रा तपा श्री विजयदेव सूरिनिः ॥ दादाजी के चरणों पर। [2061] ॥ संवत् १६१ का वर्षे मिति माघ सुदि ५ गुरूबासरे श्री जं० युग प्रधान जगद चूडामणि दादा साहिव १०० श्री जिनदत्त सूरि गुरूराज चरणपाका श्री चारकवाण का श्रीसंघेन कारापितं । पं० चारित्रसुखेन प्रतिष्ठापितम् श्रीसंघस्य कल्याण खेम कुशलम् .. समुपस्थिता । हैदरावाद ॥ "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009679
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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