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________________ (२५६) (ए) १४९१ वर्षे कार्तिक सुदि १ सोमे राणा श्री कुंजणविजयराज्ये उपकेश ज्ञातीय साइ सह. (२०) या साह सारंगेन मांडवी उत्परे खामू कोधु । सेखहषि साजणि कीधु अंके टंका चक्रद १४ जको (११) माझवी लेस्य सु देस्थई । चिहु जणे बश्सी ए रीति कीधी । श्री धर्मचिंतामणि पूजानिमित्त । सा (१५) रणमल महं गूंगर से हाला साद साडा साह चांप बश्सी विडु रीति कीधी एह बोस (१३) खोपया को न सह । टंका ५ देउलवाडानी मांडवी ऊपरि टंका ४ देउखवामाना मापा उप (१४) रि। टंका १ देउवाडाना मण इंड वटा उपरि । टंका र देउसवाडाना पारी वटां ऊपरी । (१५) टंकाउ १ देउखवामाना पटसूत्रीय ऊपरी ॥ एवं कारई टंका १४ श्री धर्मचिंतामलि पूजा (१६) निमित्ति सा सारंगि समस्त संघि लागु कोधन ॥ शुनं जवतु ॥ मंगलान्युदयं ।। श्रीः॥ (११) ए ग्रासु जिको लोप तहेहिं राणा श्री हमीर राणा श्री षेता राणा श्री लाषा रा० मोकल (१७) राणा श्रीकुंजकर्णनी आणल।श्रीसंघनी श्राण । श्रीजीसउक्षा श्रीशत्रुजयतका सम ॥ देवी मूर्ति पर। { 2007 ] * ॥ सं० १४१६ वर्षे मार्ग शु०१० दिने मोढ झातीय सा वनहत्य नार्या साजणि सुत मं मानाकेन अंबिका मूर्तिः कारिता प्रतिष्ठिता श्री ...... रिलिः ॥ * महात्मा श्रीलालजी नाणावाल के यहां मूर्ति है। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009679
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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