SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 248
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (११) पाषाण के चरणों पर। [1825] (१) ॥ संबत् १९३१ ॥ माघे ॥ शुक्का ए। चंगे। गोतम स्वामी ॥ (२) चरण पाएका कारापिता ॥ (३) मुनि गोकल चं ण (४) जट्टारक श्री जिन शांति सागर सूरिनिः । प्रतिष्ठितं ॥ श्री विजय गच्छे । [1826] (१) ॥ संवत् १९३३ मिति माघ शुक्ल ११ अभिनंदन जिन पापुकामिदं मक् (२) सूदाबाद वास्तव्य ओशवंशोय ढुंपक गणोमानाक् जुगड गोत्रीय बाबु (३) प्रतापसिंहस्य नार्या महताब कुमारिकस्य बृक्ष पुत्र राय बहापुर (४) लबमीपत सिंघस्य लघु घातृ रा । धनपत सिंघेन करापितं प्रतिष्ठितं सर्व सूरिणा॥ कानपुरवालों का मंदिर। शिलालेख । [1827] ॥ सं १८४३ का वर्षे शाके १७०७ प्रवर्तमाने माघ मासे कृष्ण पके एकादश्यां बुधे श्रेष्ठी श्री सिखरूप मल तादात्मज भंडारी श्री रघुनाथ प्रसाद तद्भार्या श्री बदामो बीबी तया कारितं श्री पार्श्व जिन मंदिरं महोत्सवेन स्थापना कारापिता श्री शिखर गिरि मधु. बने वृहविजयगच्छे सार्व नौम जट्टारक श्री जं. यु. प्र. श्री पूज्य श्री जिन शांति सागर सुरिनिःप्रतिष्ठितं श्रेयसे । (इसके बाई और एक पंक्ति में) श्री मत्तपागच्छाधिराज जट्टारक श्री १०७ श्री विजयराज सूरि राज्ये शुनं जवतु । मूर्तियों पर। [18281 ॥ सं० १७५४ वर्षे माघ वदि ५ चंझे श्री मत्खरतर पीपल्या गछे श्री जिन देव "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009679
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy