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________________ ( २०० ) (२) पंच कल्याएक चरण न्याम सुदावाद वास्तव्य कुगम साः प्रतापसिंह (३) जाजर्जा महताब कुमर ज्येष्ट सुर सदमीपनस्य कनिष्ट व्रात धनपत सिंह (४) कागरितं प्रतिष्ठिनं नः श्री जिनम सूरनिः वृद्धत्वरतरगडे ॥ [11] (१) ॥ संवत् १ए३४ माघ दि ५ बुधा श्री नमनाथ |जन नीन कल्यानक रेवत ., (२) जयत। तस्य चरण न्याय; ममन शिवरे स्त्र पिना मकसूदाबाद अजीमगंज (३) वास्तव्य दुगड प्रताडि नाजा महताब कुगर सुन लक्ष्मीपत कनिष्ट प्राता (४) धनपत सिंह कागपितं प्रतिष्ठित श्री पूज्य जी ज. श्री जिनइंस सूरीतः खरतर गडे (५) वृहत खरतर गः ॥ [ 1612] (१) ॥ सं १७२४ श्री फागुन वदि ५ श्री बोर वर्धमानजी का चरण पादुका मकसुदा (२) वाद वासी राय धनति सिंह छुपड़ने स्थापित किया था सो उसको बत्री बिजली (३) उपव सु गिरगइ जसपर सं ए६५ के फागुण सुदी ६ को कल मांडवी वासी (४) साः जगजीवन वालजी ने जीरण उधार कराई। जय मंदिर। पाषाण की मूर्तियोंपर । [1813] (१) ॥ संवत् १०२५ वर्षे वैशाख सुदि १३ गुरौ श्री मगसुदावाद वास्तव्य सासुरवा गोत्रीय घोलवंस झाली (५) य वृद्धशाखायाम् ॥ लालचंद मुत सुगालचेदेन श्री मद्गुरुणा उपदेशात् आत्म सं श्रेयार्थ च श्री समेत शैल (३) श्री जैन विहारे श्री सहस्त्र फणा पार्थ जिन विंच कारापितं प्रतिष्टितं च सुविहि तामणी लिः सकल मूरिवः ॥ मंगलं ॥ "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009679
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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