SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 197
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १६४) ४। योर्थ श्री जिनेन्द्रस्य बिं--कारितं ॥ प्रण ५। श्री यशोना सूरि संताने श्री सुमति सूरिनिः ॥ शुनं जवतु ॥ गांधाणी ( मारवाड़)। प्राचीन जैन मंदिर। धातु की मूर्ति पर [ 1709 ] * (१) जे ॥ नवसु शतेष्वद्वानां । सप्ततुं (त्रिं) शदधिकेष्वतीतेषु । श्रीवनमांगनीच्यां । ज्येष्ठार्यान्यां (२) परमजतया ॥ नाय जिनस्यैषा ॥ प्रतिमा पाडाईमास निष्पन्ना श्रीम(३) तोरण कलिता । मोक्षार्थ कारिता तान्यां ॥ ज्येष्ठार्यपदं प्राप्तो । छावपि (४) जिनधर्मबखलौ ख्यातौ । उद्योतन सूरेस्तौ । शिष्यो श्रीवछत्रदेवौ । (५) संग ए३७ अपादाः ॥ --- <(r)>oc ... * गांव गांधाणो' जोधपुर से उत्तर दिशा में कोस पर है। वहीं तालाब पर एक प्राचीन जैन मन्दिर में यह सर्वधातु की आदिवायनो को मूरिहै और उसके पृट पर यह लेख खुदा हुआ है। जोधपुर निवासी पण्डित रामकर्णजी की कृपा से मुझे यह लेख का छापा और अक्षरान्तर प्राप्त हुआ है। उहोंने इस लेख पर निन्न लिखित नोटस् लिखे हैं। पंक्ति -- 1ोष्ठार्य" यह पदनी वावक शब्द ज्ञात होता है, जो पंक्ति ३ में के "ज्येष्ठार्य पदं प्राप्तौ" इस वाक्य से स्पष्ट है। , - २ "आषाढ़ाई" पद से आषाढ़ सुदि १ और वदि १५ का भी ज्ञान हो सकता है, परन्तु यहां प्रतिपदा का सन्भव . अधिक है, क्योकि शुभ कार्य में अमावसा वर्जित है। --४1" उद्योतन सूरेः " --पट्टावली में इनके स्वर्गवास का संवत् १६४ मिलता है परन्तु उन के पहाधिकारी होनेका संक देखने में नहीं आया। लेख से जाना जाता है कि उद्योतन सूरि संवत् ६३७ में आचार्य पद पा चुके थे। इनके समय पय्यंत गच्छ भेद नहीं था इसो लिये लेख में पत्र का उल्लेख नहीं है । ऐतिहासिक दृष्ट्रिसे यह लेख बड़े महत्त्व का है। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009679
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy