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________________ ( १५१ ) [1660] संवत् १६२७ वर्षे ज्येष्ठ शुदि ए सोमे श्री पत्तने उसवाल ज्ञातीय सा० अमरसी सुत आद। जा० वीरु सुत काहाना सारंगधर वियं श्री पद्मप्रजनाथ । प्रतिष्ठितं । तथा गछे श्री विजयदान सूरिजिः ॥ श्री ॥ [ 1661] ॥ संवत् १६४४ वर्षे फागुण शुदि २ दिने उसवाल ज्ञातीय बंज गोत्रीय साह कटारू नार्या लादे सुत सा तारू जार्या जीवादे सुत सा० टटना श्री (१) संघनाम चिंतामणि श्री श्रेयांसनाथ त्रिं तपागष्ठाधिराज श्री हरिविजय सूरिजिः प्रतिष्ठितं ॥ पाषाण के चरणों पर । [1662] संवत् १८७७ रा धराकार्या श्री रत्नपुरे श्री धर्मनाथानां पादाः कारिताः वरढ़ीया बूलचंदज वेणीप्रसाद प्र । बृहत् खरतरगणेश श्री जिनलाज सूरि शिष्य पाठक हीरधर्मोपदेशन | सवालेन । काशीस्थेन प्रतिष्ठिताः श्री जिनदर्ष सूरिणा । [1663] संवत २००७ रा धराकार्या श्री रत्नपुरे श्री धर्माईतापादाः कारिताः बृदत् खरतर गणेश श्री जिनलाज सूरि शिष्य पाठक दीरधर्मोपदेशेन बरदीया बूलचंदज वेणी प्रसादेन | श्री जिनद सूरिणा बृहत् खरतरगणेशेन । [1664] सं। २००७ रा धराकार्या बृहत् खरतर गणेश श्री जिनलाज सूरि शिष्य पाठक हीरधर्मोपदेशेन काशस्थ वरदीया बूचचंदज । वेणीप्रसादेन श्री धर्मपरमेष्ठिनां पादाः कारिताः श्री रत्नपुरे प्र । श्री जिनदर्ष सूरिया खरतर गणेश । [1665] सं । १७०० रा धराकायां श्री रत्नपुरे श्री धर्म सर्वज्ञानां पादाः कारिताः सर्वशे "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009679
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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