SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 162
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चौवीशो पर । [ 1577] संवत् १५७१ वर्षे चैत्र वदि ७ गुरौ श्री वायड़ ज्ञातीय मं० नरसिंघ ना0 चमकू सुन समधर द्वितीया जा हीरू नाम्न्या देकारडा वास्तव्यः सुत मंण् धनराज नगराज संधादि स्वकुटुंगयुनया सश्रेयले श्री अभिनंदन स्वाम्यादि चतुर्विंशति एट्ट श्री आगम गछे श्री अमररत्न सूरि तत्पट्टे सोनरदन सूरि गुरूपदेशेन का रिता प्रतिष्ठिता च विधिना ॥ श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजी का मंदिर -- सुधिटोला । मूलनायकजी के चरणोंक पर। [1578 ] * (१) ॥ श्री विक्रम सम्यात् सं० १६७१ वर्षे वैशाष सुदि ३ शनौ ॥ श्रीमत्वीर ब्धि लोलक(२) बोलडिंडी पिंडप्रसरतरसशारदशशांककिरणसुयुक्तिनौक्तिकहानिकरधवलय(३) शोनिः पूरितदिझंडलसकलधर्मकर्मनीतिप्रवृत्तिकरण प्राप्ताशेषजुवनप्र(४) सिजिनानाशास्त्रोत्पन्नप्रवक्षघुद्धिप्राग्जारजावितांतःकरणाश्वपतिगजपतित्रपति-- (५.) प्रणतपादारविंद वंदप्रथिततनुनवनव्यजुजादंडचंडप्रचंडकोदंडखंडितानेकका(६) विन्यतमकुशितारिप्रकरतरवशीकृताखि अखंगभूपालमौलिसंधृत निर्देशाधिशेषधर्म(७) शर्माधिकावाससत्कीर्तिनिःशेषसावनोमशालसमस्तमनुजाधिपत्यपदवीपो * दिल्ली सम्राट जहांगीर के समय ये मूर्तियां की प्रतिष्ठा हुई, उस समय पातसाह को कई लोगोंने कह दिया कि सेवड़ोंने (जैनी लोगोने) मूर्तियां यन वाई हैं और हजुरके नामको अपने बुटीक (मूर्तियों के) पैरों के निचे लिख दिया है। फिर पाधापातिसाहके क्रोधका पार न रहा। श्री संधन पातिसाह का क्रोध शांति तथा राज्यके तर्फसे सर्व प्रकार अनिष्ट दूर करनेको ये मूतियों (न १५७८-१९८४) के मस्तक पर पातिसाह का नाम खुदवा दिया था ऐसा प्रवाद है। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009679
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy