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________________ ( १२७ ) [1557 सं० १४७७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि पूर्णिमा तिथौ गुरुवारे मूलनायक श्री पार्श्वनाथ जिन पंचतीर्थी जिनैः प्रतिष्ठितं श्री वृहत् परम जहारक श्री जिनसुख सूरि वराणां उपाध्याय श्री देवराम गणिभिः ॥ श्रारस्तु ॥ कारितं चैतत् गणधर चौपड़ा गोत्रे शाह श्री लाल चंदजी पुत्ररत्न श्री कपूरचंदजीकेन स्त्रषुन्यविवृद्धयर्थ ॥ शुभं भवतु ॥ श्री आदि जिन वि ॥ श्री नेमिनाथ जिन बिच ॥ श्री शांति जिन विवं ॥ श्री महावारस्वामी विवे श्री पार्श्वनाथजी की प्रतिमा पर [15581 संवत् १७२५ शाके १५५१ वैशाख सुदि ५ आदित्यवारे ..."। श्री श्रादिनाथजी का मंदिर - चुडीवाली गली । मूर्ति पर। [15581 सं० १९३४ माघ शुदी ३ चंद्रप्रन बिंब कारितं । मालकोस गोप परमसुख करमचंद प्रतिए । विजय गछे ज०। श्री शांतिसागर सूरिनिः ॥ पंचतीर्थयों पर। [530] ॥ सं० १५५४ वर्षे मार्ग सु० दसमी ऊकल चलथ गोने शा ! पेडा जा० । देउ सुत म। विमा। ना धली क्षापाकेन ला अमरी पुत्र नाथू प्रमुखकुटुंबयुतेन निजपितृव्य श्रेयसे श्री आदिनाथ विवं कारितं । प्र । तपा श्री पदमीसागर सूरिनिः श्रीरस्तुः॥ [1561] सं० १५१७ वर्षे माघ शु० ५ बुधे प्रागः । ज्ञा० । श्रे० कक्षा न वानू सु० मूग गला रागा वरद जा जोविणी विरु मानू सु० घावर तेजा सहिमादि कुटुंत्रयुतेन पितृमातु "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009679
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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