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________________ ( 2 ) हाल में वे लोग मुद्दई होकर श्री पावापुरी तीर्थ पर जो मुकदमा उपस्थित किये है उस में मेरा भी मुद्दालहों में नाम रख दिये हैं। मैं प्रथम से ही धार्मिक झगड़ों से अलग रहता था परन्तु जब सर पर थोक पड़ा है तो उठाना ही पड़ेगा। दुःख इस बात का है कि शासनायक वीर परमात्मा के परम शान्तिमय निर्माणस्थान में मुकदमेबाजी से अशांति फैलाना अपने जैनधर्म पर धन्धा लगाना है। मैं इस समय इस संबंध में कुछ मतामत प्रकाश करना अनुचित समझता हूं। इसी वर्ष के अक्षयतृतीया के दिन मेवाड़ के अन्तर्गत श्री केशरियानाथजी तीर्थ में मंदिर के ध्वजादंड आरोपन के उपलक्ष में जो वीभत्स कांड हुआ है वह भी दूसरा दुःख का समाचार है । काल के प्रभाव से इस तरह प्रायः हमलोगों के सर्व धर्मस्थान और तीर्थों में अशांति देखने में आती है। ई० सम्बत् १६६४१६५ से मुझे ऐतिहासिक दृष्टि से जैन लेखों के संग्रह करने की इच्छा हुई थी तबसे अद्यावधि संग्रह कर रहा हूं और उन सब लेखों को जैसे २ सुनीता समझता हूं प्रकाशित करता हूं। यद्यपि मैंने इस संग्रह कार्य के लिये तन, मन और धन लगाने में त्रुटि न रक्सो है फिर भी बहुत खो भूलें रह गई हैं। राय बहादुर पं० गौरीशंकर ओकाजी मुझे प्रथम खंड के त्रुटियों पर अपना मन्तव्य सूचित किये थे जिस कारण में अन्तःकरण से उनका आभारी हूं और उस पर मैंने विशेष ध्यान रखने की चेष्टा की हैं। यह लेख संग्रह का कार्य बहुत कठिन और समय सापेक्ष है, कई जगह समय की अल्पता हेतु और कई जगह मेरे ही भ्रम से जो कुछ पाठ में अशुद्धियां रह गई हैं उनके लिये मैं पाठकों से क्षमाप्रार्थी हूं तथा ऐसी २ त्रुटियां रहने पर भी विद्वानों की तथा अनुसंधानों को उस ओर दृष्टि आकर्षित करने की इच्छा से इन लेखों को प्रकाशित करने का साहस किया है प्रथम खंड में १००० लेखों का संग्रह प्रकाशित हुआ था। उनमें जो कुछ नंबर छूट गये थे वे पुस्तक के अंत में दे दिया था। इस खंड में १००१ से २१११ तक याने ११११ लेख प्रकाशित किये जाते हैं। इस वार भी भ्रमवश २ नंबर छूट गये हैं । नं० १९८७ पुस्तक के अंत में छप गया है और मं० १६६० यहां दिया जाता है। श्वेताम्बरों के प्रसिद्ध स्थान जेसलमेर दुर्ग ( जेसलमेर ) के मंदिर के लेखों को संग्रह करने की अभिलाश बहुत दिनों से थी । वहां भी क्षेत्रस्पर्शना हो गई है और निकटवर्त्ती " लोद्रपुर ( लोइयां ) ” नामक प्राचीन स्थान भी दर्शन किया है। आगामो खंड में वहां के लेखों को प्रकाशित करने को इच्छा रही। ४८ इण्डियन मिरर फोट कलकत्ता । [सं०] १६८४ ई० ०२१२७ निवेदक पूरण चंद नाहर [ 1690 ] # संवत् १६७१ वर्षे आगरा वास्तव्य. ..... कल्याण सागर सूरिः.. * यह लेख पढ़ने के पास 'फतुहा ' के दिगम्बर जैन मंदिर में श्वेत पाषाण की खंडित श्वेताम्बर मूर्ति के चरण चौकी पर है । "Aho Shrut Gyanam"; ।
SR No.009679
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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