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________________ ( १०१ ) १४ | जिनराय चिन्यो कुशल विजय पुन्यास तपगन घरी है देख श्रीवछ विचार सम्यक् गुन सुधार १५ | नरम की रज टार पूजा जिन करी है १ कुंम लिया चोमुष की प्रतिमा चतुर धरम विमल जिन नेम १६ । मुनिसोत र निकै करत जवानी प्रेम करत जवांनी पेम नेम जिन संघ सुजानौ विमल ल १७ | न वाराह धरम जिन व ( ज ) र पानी मुनिसोत जिन कूर्म सपन लप होत सबै सुष प्रति १८) मा चारों जांन न सुन घरीसु चौमुष २ ॥ ११ १ ४ + ५ १२ ३ ७। २ ५ १५ १२ १ ४ € ७ ५. १० १६ २ १४ । ११ १३ "Aho Shrut Gyanam" २५ ८० २० क्षि ७० क्षि १५ ५० प ३० ॐ | स्वा ३५ स्वा ६० ५५ ४५ प * Bio हा हा ६५ | ४० [ 1456 ] * पातिसादि श्री जहांगी ( २ ) । १ | | ० || श्री सिद्धेभ्यो नमः ॥ स्वस्ति श्री विष्णुपुत्रो निखिल गुणयुतः पारगो वीतरागः । पायाः क्षीणकर्मा सुरशिखरि समः [कल्प ] २| तीर्थप्रदाने ॥ श्री श्रेयान् धर्ममूर्तिर्भविकजनमनः पंकजे विजातुः कल्याणां - चंद्रः सुरनर निकरैः सेव्यमा ३। नः कृपालुः ॥ १ ॥ ऋषजप्रमुखाः सर्वे गौतमाचा मुनीश्वराः । पापकर्म विनिर्मुक्ताः क्षेमं कुर्वंतु सर्वदा ॥ २ ॥ कुंर । * यह लेख प्रफेसर बनारसीदासजी ने " जैन साहित्य संशोधक " खंड २ अंक १ पृ० २५-३४ में विस्तृत टिप्पणी के साथ प्रकाशित किया है । २६
SR No.009679
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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