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________________ (५८) पर पढ़ाड़ के निचे ब्रह्मकुएफ. सूर्य कुएक यदि उष्ण कुएक बहुत से है और स्थान देखने योग्य है | पांच पाहाड़ जो सामने दिखाई देते हैं (१) विपुल गिरि ( २ ) रत्न गिरि ( ३ ) उदय गिरि ( ४ ) स्वर्णगिरि ( ५ ) वैजार गिरि । पहाड़ पर बहुत से जैन मंदिर बने हुये हैं । बहुत से चरण वा मूर्त्ति इधर से उधर बिराजमान है इस कारण यहां के सब लेख एक साथ मिला दिया गया है । पार्श्वनाथ मंदिर प्रशस्ति । [236] ( १ ) प० ॥ नमः श्री पार्श्वनाथाय ॥ श्रेयः श्री बिपुलाचलामर गिरि स्थेयः स्थिति स्वीकृतिः पत्र श्रेणि रमा जिराम भुजगाधीशस्फटासंस्थितिः । पादासीन दिवस्पतिः शुन फल श्री कीर्त्ति पुष्पोजमः श्री संघाय ददातु बांछित फ ( २ ) सं श्री पार्श्व कल्पद्रुमः ॥ १ यत्र श्री मुनि सुव्रतस्य सुबिजोर्जन्म व्रतं केवलं साम्राजां जय राम लक्षण जरासंधादि भूमीजुजां । जज्ञे चक्रि वलाच्युत प्रतिद्दि श्री शालिनां संभवः प्रापुः श्रेणिक नुधवादि *" जैन तीर्थ गाईड " के तवारिख सुत्रे बिहार में उसके ग्रंथकर्त्ता लिखते है कि मययान महल्ला के “ मंदिर में एक शिला लेख जो अलग रखा हुवा है - संवत तिथि वगेरा की जगह टुटी हुई है पंक्ति ( १६ ) हर्फ़ उमदा मगर घीस जाने की वजह से कम पढ़ने में आता है अखीर की पंक्ति में जहां गच्छ का नाम है वहां किसीने तोड़ दिया है बज्र शाखा बगेरह नाम बेशक मौजूद है " यह पढ़ कर मुझे देखने की बहुत अभिलाषा हुई । पता लगाने पर १७ पंक्तिका एक लेख दिवार पर लगा भया पाया । किसी २ जगह दूट गया है संवत वगेरह साफ है और दुसरा टुकड़ा मालून भया । पहिले टुकड़ेके लिये बहुत परिश्रम करने पर पता लगा और अब वहकि रईस बानु धन्नुलालजी सुचंति के यहां रखा गया है। यह प्रशस्ति पूर्व देश की अपूर्व बस्तु है आज तक अप्रकाशित था । इसमें श्री खरतर गच्छकी पट्टावली है जिस्से बहुत पक्षपातीयों का भ्रम दूर हो जावेगा । यह पांच सौ साठ वर्ष प्राचीन है और उस समय के मुसलमान सम्राट और प्रादेशिक शासन कर्ताका भी नाम विद्यमान है। पांडित्य और पद लालित्य भी पुरा है ।
SR No.009678
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages341
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size98 MB
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