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________________ (५१) 1 [205] सं० १७०० मा बर्षे सिते १५ ॥ बृहत् खरतर गछे यु० न० श्री जिनरङ्ग सूरि शाखायां० शि० चरण रेणुना दीप बिजयायाः स्थापिते । श्री कीर्ति बिजयायां -- चरण सरसी रुहे प्रतिष्ठितं ॥ साध्वी ॥ श्री सोजाग्य बिजयाया। पादपद्म प्रतिष्ठितं । [206] सम्बत १७४७ शाके १७१३ बर्षे मिति वैशाख शुक्ल ३ तिथौ भृगु बासरे श्री मत् खरतर गई नहारक श्री जिनरङ्ग सूरि शाखायां साध्वीमहतरा मति विजयाकस्य पादुका शिष्यनी रूपविजिया पावापूरी मध्ये प्रतिष्ठापितेः J[207] ॥ श्री संवत १९३१ का मिति माघ शुक्ल दशमी तिथौ चन्छ बारे श्री मद्बहल्लाका गुराधिपति ॥ श्री पूज्याचार्य जी श्रीश्री १०७७ श्रीश्री अक्षयराज सूरिजी चरण कमलो स्थापितौ श्री अजयराज सुरिनिः प्रतिष्ठितं च श्री शुनंनवतु = J[208] ॥ नमः ॥ संबत १७१ए बर्षे माघ मासे शुक्लपक्ष षष्ठी तिथौ गुरुवासरे श्री महावीर जिनवर चरण कमले शुने स्थापिते । हुगली वास्तव्य उस बंशे गांधि गोत्रे बुलाकी दास तत्पुत्र साद माणिक चंदेन श्री क्षत्रीयकुंम नगर जन्मस्थाने जन्मकल्याणक तीर्थे जीर्णोद्धार फरापितं ॥ स्वपरयोः शुजाय ॥१ यावन्नमस्तले सूर्य चंडमसौ स्थिती बरौ तावन्नंदतु तीर्थोयं स------- [200] ॥ नमः ॥ संबत २०१ए वर्षे श्री महाबीर जिन चरण कमले स्थापिते श्री क्षत्रीकुंके संघाटे साह माणिकचंदेन जीर्णोद्धार करापितं ॥ श्री रस्तु ।
SR No.009678
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages341
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size98 MB
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