SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३९ ) तेन द्रव्येण धर्मशाला जिनालय कारापितं प्रतिष्ठितं सर्व सूरिजिः श्रीसंघ च संजालसी श्री संघमालक श्रीरस्तु श्री कल्याण मस्तु श्री जीकटरीया इमप्रेश राज्ये ष्ष्टाब्द १८७९ । पाषाण के चरणों पर । ✓[165] (१) च्यवन ( २ ) जन्म (३) दीक्षा ( ४ ) केवल ( ५ ) निर्माण कल्याणक पाडुका ॥ साधु १२००० | साध्वी १२५००० | श्रावक २१५००० । श्राविक्का ४३६००० ॥ श्री वासु पूज्य पञ्चकल्याणक चरण कारापितं चंपा नगरे घोशवाल वृ । शा । डूगड़ गोत्रे वा । श्री बुधसिंघजी तत्पुत्र श्री प्रतापसिंघजी तत्नार्या महतावकुमर बीबी तत्पुत्र राय श्री लक्ष्मी पतसिंघ श्री धनपतसिंघ बहादुर कारापितं प्रतिष्ठितं सर्वसूरिनि श्री संघस्य शुजंभवतु ॥ ✓[166] ॥ ए ए ० ॥ सम्बद्वार्षि नागेन्दो राध शुक्लादशी भृगौ मल्लि नम्योः पदं जीर्णमुद्धृत खरतरेण श्री जिनदर्ष निदेशी वा जाग्यधीर गणि किल माल्हू गोत्रस्य प्रष्णेन्दोर्वित्तमुद्दिश्य काय्यकृत् २ युग्मम् ॥ र्स० १०१५ मिती बैशाख सुदि १० शुक्रे मिथिला नगय श्री मल्लि जिन चरणन्यासः ॥ ✓[167] सं० २०३१ माघ शुक्लपदे १२ बुधे श्री वासुपूज्य ( छा िजतनाथ, सम्भवनाथ ) जिन * यह चरण दरभङ्गा लैन में सीतामढी ष्टेसनक पास मिथिला नगरी से उठाकर लाया भया है। वहां इस समय कोई जैन मन्दिर नही है । १९ मां तीर्थङ्कर श्री मल्लिनाथ स्वामी के चार कल्याणक और २१ मां श्री नमि नाथ स्वामी चार कल्याणक यहां भये थे । श्री मल्लिनाथ मिथिला के कुंभ राजा और प्रभावती रानीकी कुमरी थी । जन्म, दीक्षा, केवल ज्ञान मार्गशीर्ष सुदि ११ के दिन भया था। इसी नगरके विजय राजा और विमा रानोके पुत्र श्री नाममाथ स्वामीका जन्म श्रावण वदी ८, दीक्षा आषाढ़ वदि ९, केवल ज्ञान मार्गशीर्ष सु० ११ के दिन भयाथा किसी २ ग्रन्थमें “ मिथिला ” के स्थान में " मथुरा " नगरी भी देखने में आया है। सत्या सत्य ज्ञानगम्य है । चरम तीर्थङ्कर महावीर भगवानका भी ६ चौमासा यहां भयाथा ।
SR No.009678
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages341
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size98 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy