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________________ ( १७६ ) धरणा एत श्री आदिनाथ मुख्यश्चतुर्विंशति पहः कारितः पुनिम पक्ष साघु रत्न सूरिणामुपदेशेन प्रतिष्ठित शंडलि वास्तव्यः । V (746 ) सं० १५२० श्री मूल संघेन महारक श्री विजय कीर्ति श्री. सभा मंडप। (747 ) ॥ॐ ॥ संवत् १६७६ वर्षे माघ सुाद १५ रात्र वासरे खरतर गच्छ महारक श्री जिन रत्न - - पुष्य नक्षत्र राऊत श्री उदयसिंहजा विसरि विजय राज्ये जयराज्ये ॥ श्री सुमसिनाथ रउ नववु कीउ श्री संघ करावउ सूत्रधार पीसा पुत्र नसा नववु कीउ। सूत्रधार नारयण नट सेध धन । (748 ) सं० १९२८ वर्षे भद्रपद कृष्णपक्ष ७ बुध - - वृहत्खरसर गच्छे प्रहारक श्रीमगत सुर रावतजी श्रो वाकीदासजी--। जुहारसिंग विजय राजे ओ सुमतनाथजीशिणगार कीधी..। ( 749 ) ॥ ॐ ॥ संवत १३५२ वैशाख सुदि ४ श्री वाहडमेरी महाराज कुल श्री सामंत सिंह देव कल्याण विजय राज्ये तन्नियुक्त श्री करण मं० वीरामेल वेलाउल भा० मिगन प्रभुत बोधं अक्षराणि प्रयच्छति यथा। श्री आदिनाथ मध्ये संविष्ठमान श्री विघ्नमर्दन
SR No.009678
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages341
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size98 MB
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