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________________ ( ११७) विवं कारितं पूर्णिमा पक्ष भीमपल्लीय भट्टारक श्री जयचंद्र सूरीणामुपदेशेन प्रतिष्ठित ॥श्रीः ॥छ॥ ( 630) सं० १५३१ वर्षे माघ वदि ८ सोमे श्री श्रीमाल ज्ञातीय श्री. भरमा भार्या परमादे पुत्र आसा भार्या वईरामति नाम्न्या स्वक्षत पुण्यार्थं आत्म अयोथं श्री जीवित स्वामि श्री सुविधिनाथ चतुर्विंशति पट्ट का० प्र० श्री धर्मसागर सूरिभिः। ( 631 ) सं० १६२७ वर्षे वैशाख वदि १० श्री मूलसंघे भ० श्री सुमति कीर्ति गुरूपदेशात् का. जो देवसुत को सिंघा सु• धर्मदास रुरिदास अनंतनाथ नित्यं प्रणमति । ( 632 ) सं० १८१४ रा मिती अषाढ सुदी १३ श्री नेमनाथजी वि० ॥ छ । दादाजी के चरण पर। ( 633 ) सं०१८४८ मिति ज्येष्ठ कृष्ण ८ तिथो बुधवारे। भ। श्रीजिनचद्र सूरिभि प्रतिष्ठितं ॥ म। श्री जिनकुशल सूरिजो पादुका ॥ १। श्री जिनदत्त सूरिजीरा पादुका।
SR No.009678
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages341
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size98 MB
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