SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 177
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १३१) जयपुर। यति श्यामलालजी के पासकी मूत्तियों पर (571) सं०१३-- वर्षे माघ सुदि १३ सोमे श्रीकाष्ठासंघ श्रीलाड वागड (2) गण श्रीमन-- मुरूपदेसेन हुंवउ ज्ञातीय व्य० वाहड भार्या लाछि सुत षीमा मार्या राजलदेखि अयोथं सुत दिवा मार्या संभव देवि नित्यं प्रणमति। (572) सं० ११३६ वर्षे पौष : सोमे श्रीब्रह्माणगच्छे श्रीश्रीमा० --- माथलदे पु० सामलेन श्रोशांतिनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबुद्धिसागर सूरिमिः ॥ श्री॥ ( 53 ) सं० १५१५ वर्षे फागुण शुदि १ शुक्रवारे। ओसवाल ज्ञातीय बच्छस गोत्रे सा. धीना भार्या फाई पु. देवा पद्मा मना वाला हरपाल धर्मसी आत्मपुण्यार्थ श्रीधर्मनाथ विवं कारितं श्रीम० तपागच्छे - - - - । ( 574 ) सं० १५२१ वर्षे ज्येष्ट सुदि १३ गुरी रणसण वासि श्रीश्रीमाल ज्ञासीय श्रे• धर्मा मा. धर्मादे सुत भोजाकेन भा० भली प्रमुख कुटुम्ब युतेन स्वश्रेयसे श्रीशांतिनाथ चतुर्विंशति पहः कारितः प्रतिष्ठितः श्री सुविहत सूरिभिः ॥ श्रीरस्तु ॥
SR No.009678
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages341
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size98 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy