SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (६८) * बनारस काशीदेशका यह वाराणसी वा वनारस सहर जैनियोंका बहुत पवित्र स्थान है। हिन्दुओंका भी प्रसिद्ध तीर्थ है। यहां प्रतिष्ठ राजा और पृथ्वी राणीके पुत्र ७ मां तीर्थंकर श्री सुपार्श्वनाथजी का च्यवन और जेठ सुदि १२ जन्म, जेठ सुदि १३ दीक्षा, फागुन वदि ६ केवल ज्ञान और अश्वसेन राजा वामा राणी के पुत्र २३ मां तीर्थंकर भी पार्श्वनाथजी का भी च्यवन, पोष वदि १० जन्म, पौष वदि ११ दीक्षा और चैत वदि १ केवल ज्ञान यह ८ कल्याणक भये हैं। महल्ले भेलुपुरा और अदेनीमें मंदिर बने हुए हैं सहरमें कई एक मंदिर हैं। यहां से? कोस पर सिंहपूरी है यहां ११मांतीर्थंकर श्री श्रेयांसनाथजी का च्यवन, फागुन वदि १२ जन्म, फागुन वदि १३ दीक्षा और माघवदि ३ केवल ज्ञान भया है। निकटमें वौट्ठोंका सारनाथ नामक प्राचीन स्थान है। सुत टोलका मंदिर। पंच तीर्थी पर। - ( 403 ) सं० १५१५ वर्षे माह शुक्ल १३ दिने श्री ओसवाल ज्ञातीय अ० मूंधा मार्या माधलदे सु० धनदत्तन पित श्रेयो) श्री शितलनाथ विंवं पूर्णिमा पक्ष भ० श्री सागर तिलक सूरि पट्टे श्री महितिलक सूरि कारितं प्रतिष्ठितं श्री सूरिभिः ॥ V ( 404 ) सं० १५५६ वर्षे आषाढ़ सुदि दिने चंपकनर वासि श्रे. जावड़ भार्या पूरी सुत धरणाकेन आर्या हर्षाई सुत नाकर प्रमुख कुटुम्ब युतेन श्रीशांतिनाथ विवं श्री निगमागमा भार्या कारितं प्रतिष्ठितं श्री निगमा विभावक श्री इन्द्रनंदि सूरिभिः ॥ श्रीः ॥ श्रीः॥
SR No.009678
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages341
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size98 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy