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________________ ( ६) ( 345 ) सागरांकवसुचंद्र वर्षे (१८८७) नेत्रषण गणधरायुते शके (१७६२) फाल्गुनां तिमदले सुनागके (५) भार्गवे सितपटौघपालके वाणारस्यां श्रीमद्भगवत्सहस्रफणालंकृत श्री पार्श्वनाथ जिनमूर्तिः कारापितं श्रे० उदय चंन्द्र धर्म पत्नी महाकुवराख्यया मूल चंद्र सुत युतया यहत्खरतर गणेश श्री जिन हर्ष गणि पदालंकृत श्री जिन महेंद्र सूरिणा प्रतिष्ठिता। ( 346 ) सं० १९०० वर्षे.. श्री गोडी पार्श्वनाथ विवं का० ---। "( 347 ) सं०१९१० शाके १७७५ माघ शुक्ल द्वितीयायां श्री पार्श्वविवं प्रतिष्ठितं वृहत्खरतरगच्छे---। टोंकपरके चरणों पर। . ( 348 ) ॥ संवत् १८२५ वर्षे माघ सुदि ३ गुरो विरानी गोत्रीय सा० खुसाल चन्देन श्री अजितनाथ पादुका कारापिता श्री मत्तपा गच्छे । ( 349) ॥ संयत् १९३१ । माघे । श। १० चंद्र। श्री अजितनाथ जिनेन्द्रस्य चरण पादुका जीर्णोद्धार रूपा श्री संघेन कारापिता। मलधार पूर्णिमा श्री मद्विजय गच्छे । महारक । श्री जिन शांतिसागर सूरिमि प्रतिष्ठितं च ॥ - ( 350 ) ॥ संवत् १८२५ वर्षे माघ सुदि ३ गुरौ विरानी गोत्रीय सा० खुसालचंदेन श्री संभव पादुका कारापिता श्री मचपा गच्छे ।
SR No.009678
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages341
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size98 MB
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