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________________ (८०) ( 316) ॥सं० १७८६ वर्षे आसोज सुदि ८ श्रीपासचन्द गच्छे ॥ श्री उपाध्याय षेमचन्द जीना पादुका ॥ ( 317 ) ॥ संवत १८१८ वर्षे श्री संभवनाथ जिनधरण कमल स्थापिते साह माणिक चंदेन जीर्णोद्धार करापितं ॥ ( 318 ) सं० १८२५ वर्षे माघ शु० ३ गुगै गोवर्द्धन सत सरुपचंदेन प्रति महि - - नाथ बिंब कारापितं। (319 ) ॥ संवत् १८२६ श्री ५ पं० लोलचन्दजी पादुकं ॥ मनसारामेन स्थापितं । सवंत् १८२६ श्री ५ पं० रूपचन्दजी पादुका ॥ संवत् १८२६ श्री ५ श्री वा० भारमल्लजी ॥ ( 320 ) ॥ शुभ संवत् १८७७ वर्षे ॥ वैसाख शुक्ल पंचम्यां चंद्रवासरे श्री जिन कुशल सूरीश्वर सद्गुरूणा चरण पादुका प्रतिष्ठिता श्री महत्खरतर गच्छे भहारक श्री जिन अक्षय सूरि पहालं कृत श्री जिनचन्द्र सूरिभिः श्री मत्पाटलिपुर वास्तव्य । समस्त श्री संधैः प्रतिष्ठा कारापिता। पं । गणि श्री कीर्युदयोपदेशात् ॥ श्री रस्तु। ( 321 ) ॥ सम्बत् ॥ १८७७ ॥ वर्षे वैशाष शुक्ल पंचम्यां चन्द्र वासरे श्री जिन कुशल सूरीश्वर सद्गुरूणां चरण पादुका प्रतिष्ठिता भहारक श्री जिन अजय सूरि पहालंकृत श्री जिन
SR No.009678
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages341
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size98 MB
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