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________________ पंचकल्लाणं नमिविनमिरामपंडव-नारयपज्जुन्नसंवपमुहाओ। - दविडनरिंदाण सम, सिद्धाओ णेगकोडीओ ॥१५॥ सेसजिणाणं काले. जे सिद्धा तह जिणंतरे चेव । सेत्तुज्जे ताण संखा, अइसयणाणी परिकहेइ ॥१६॥ गहु एत्थ समोसरिओ, नेमिजिर्णिदो भवारिनिद्दलणो। बारवइमाइनयरीओ विहरिओ भब्वसत्ताणं ॥१७॥ पडिबोहं काऊणं, सक्काइदसारकण्हरामसुओ। नरवइमउडधराणं विहिपणओ चरमकालंमि ॥१८॥ उजिंतमहिहरम्मी, सहिओ अगगार पंचहिं सएहिं । छत्तीसम्भहिएहिं, पत्तो परमेसरो मोक्खं ॥१९॥ पुब्बि पच्छा य तहा, बहवे सिद्धा य लोगनाहस्स। बहुपावसंचयहरं, नमामि उज्जितवरतित्थं ॥२०॥ तित्थयस्केवलीहि, गणहरपुरधरसाहुमाईहिं । जो कोइ सुहपएसो अक्कंतो सो महातित्थं ॥२१॥ पुणरवि भगवं विहरइ भारहं संजयाण लक्खाई। नाऊण चरमकालं, अट्ठावयनगवरारूढो ॥२२॥ दसहिं सहस्से हिं समं. मुणिवस्तवचिन्नचरमदेहाणं । काऊण अगसणविहीं, सव्वेहि समो गओ मोक्खं ॥२३॥ गोसोसचंदणागरुचियाए सक्कारिओ सुरवरेहिं । भरहागम जिणभवणं कणयमयं रयणमालाहिं ॥२४॥ "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009676
Book TitleJain Stotra Sanchayasya Part 1 2 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyasagarsuri
PublisherRamanlal Jaychand Shah Kapadwanj
Publication Year1960
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size6 MB
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