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________________ थोतं पढमं रायाहिराओ, निप्पडिवक्खो अनंतविरिओ य । सयपुत्तनमियचलणो, नरनाहसहस्रपणिवडओ ॥ १२ ॥ परिदंसियसिष्पकलो. पमुइय निच्चं सदेव लोगंमि । वित्थरियदानविन्नाणरयण रयणायरो जयइ ॥ १३॥ परिपालिऊण रज्जं, भवियाण हियट्टयाएँ तो भयवं । भरहाइदत्तपुहईरज्जं, रयणाणि सव्वाणि || १४ | संवच्छरियं दाणं, कणगाह पयच्छिऊण उद्दामं । सहिओ पुरंदरेहिं, सव्वेहिं सुरासुरेहिं च ॥ १५ ॥ मणिकणगरयणसी हा सणमि हविओ सुरेहिं जगतामी । कयकोउय मंगल गीयन आउज्जसदेणं ॥ १६ ॥ - वत्थाहरणविलेवण-कुसुमाइ जगेऽवि गरुयमोल्लाई । रेहंति विसेसेणं, जगगुरुणो अंगलग्गाई ॥१७॥ उच्छलइ नंदिसहो, जय जय तेलोकभाणु सुरनाह ! | raute मोहतिमिरं, केवलकिरणेहिं अवणेहि ॥ १८ ॥ जय जगपईव ! वच्छल ! जगबंधव ! जय तिहुयणमयंक ! | धम्म कहाजुहाए, पडिबोहसु भवियकुमुयाई ||१९|| रयणदाणेण एवं, जह जम्मदालिहं फेडेसिं । तह दुहियजीवाण सामिय, चरित्तनिहिप्पयाणेणं ॥ २० ॥ सिबियाए सुदंसणाए, मणिमयसीहासणंमि उवविट्ठो । सकासाणसुराद्दिव उभओ चामरविहत्थेहिं ॥२१॥ "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009676
Book TitleJain Stotra Sanchayasya Part 1 2 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyasagarsuri
PublisherRamanlal Jaychand Shah Kapadwanj
Publication Year1960
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size6 MB
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