SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बाली लिपि की उत्पत्ति ई.स. पूर्व की सातवीं शताब्दी के आसपास फिनिशिअन् लिपि सं ग्रीक (यूनानी) अक्षर बने, जो प्रारंभ में दाहिनी ओर से बाई ओर को लिखे जाते थे, परंतु पीछे से बाई ओर से दाहिनी ओर लिखे जाने लग जिससे कुछ अक्षरां' का मन बदल गया. इस फेरफार के पीछे उनसे पुराने लॅटिन और लॅटिन से अंग्रेजी (रोमन) अत्तर यन. यों फिनिशिअन और वर्तमान अंग्रेजी (रोमन) अक्षरों का लगभग २६०० वर्ष पूर्व का संबंध होने पर भी उनका परस्पर मिलान किया जाये तो A (ए), B (वी), 0 (डी), E (ई), (एच), K (के), 1 (ऍल), M (ऍम् ), N (पॅन् ),P (पी), Q (क्यू), R (आर) और (टी) में १३ अक्षर अपने मूल फिनिशिअन अक्षरों से बहुत कुछ मिलते हुए हैं. इसी तरह अशाक के समय की ब्रामी लिपि का उपर्युक्त हिअरेटिक, फिनिशिअन् प्रादि लिपियों के साथ मिलान करने पर यदि ब्राह्मी उनमें से किसी से निकली हो तो उस लिपि के साथ ब्राधी की समानता, अंग्रेजी और फिनिशिअन् के बीच की समानता से बहुत अधिक होनी चाहिये थी क्यों कि वर्तमान अंग्रेजी की अपक्षा ब्राह्मी का फिनिशिअन् के साथ करीब २२०० वर्ष पहिले का संबंध होता है; परंतु ग्राभी का उक्त लिपियों के साथ मिलान करने से पाया जाता है कि: इजि । मिसर) की हिअरदिक लिपि का एक भी अक्षर समान उचारण वाल ब्राह्मी अक्षर स नहीं मिलता, असोरिश्रा' की क्थुनिफॉर्म' लिपि से न तो फिनिशियन् आदि सेमिटिक लिपियों का और न ब्राह्मी का निकलना संभव है. वह लिपि भी प्रारंभ में चित्रात्मक थी परंतु पीछे से ईरानियों ने उसे पास्मक बनाया तो भी उसके अक्षर चलती हुई क़लम से लिखे नहीं जा सकते. उसका प्रत्येक अधर नार के फल की सी श्राकृति के कई चिम्सों को मिलाने से बनता है. वह भी एक प्रकार से चीनी लिपि की मां चित्रलिपि सी ही है और उसका लिखना सरल नहीं किंतु विकट है. फिनिशिन लिपि की वर्णमाला में २२ अक्षर हैं जिनमें से केवल एक गिमेल (ग) अचर (मोभर के लख का) ब्राह्मी के ग से मिलता है, प्राचीन ग्रीक (यूनानी) लिपि के दो अक्षर ‘गामा' (ग) और पीटा (4) ब्राझी के 'म' और 'थ' से मिलते हैं. मिसन, सिर में यहुन सूचक चित्र बना भिक विद्वान , फिनिशिअन् के अक्षर है' 'वाम् ' 'का' और 'रेश' से क्रमशः निकले हुए चार ग्रीक (यूनानी) अक्षरों 'यप्सिमन्, 'वानो, 'कप्पा' और 'हो' का रुख बदल गया, पीछे से ग्रीक लिपि में वाओ' का प्रचार न रहा. १. मिसर में यहुत प्राचीन काल में जो लिपि प्रचलित थी वह अक्षरात्मक नहीं किंतु चित्रलिपि थी. उसमें अक्षर नथे किंतु केवल आशय सूचक चित्र बनाये जाते थे जैसे कि मनुष्य ने प्रार्थना की' कहना हो तो हाथ जोड़े हुए मनुष्य का चित्र बना दिया जाता था. इसी तरह कई भिन्न भिक्ष चित्रों द्वारा कोई पक विषय बतलाया जाता था. उसके पीछे उसी चित्रलिपि से वात्मक लिपि बनी जिसको यूरोपिनन् विद्वान् 'हिअरेटिक' कहते हैं. उसीसे फिनिशियन् लिपि का निकलना माना जाता है. .. पशिश्रा के पश्चिमी भाग में युफेटिज़ नदी के पास का एक प्रदेश जो तुर्क राज्य में है. प्राचीन काल में यह बड़ा प्रतापी राज्य था जिसकी राजधानी निवेवा थी. इस राज्य का विस्तार बढ़ता घटता रहा और एक समय मेडिया, पर्शिमा (ईरान), अनिश्रा, सीरिया आदि देश इसीके अंतर्गत थे. ऐसा पाया जाता है कि यह राज्य प्राचीन बायीलन के राज्य में से निकला और पीछा उसीम मिल गया. मुसलमानों के राजत्वकाल में बड़ी आबादी वाला यह राज्य ऊजड़ सा हो गया. 'क्युनिफॉर्म' लिपि यहीं के लोगों ने प्रचालित की थी. . यदि केवल प्राकृति की समानता देखी जावे तो फिनिशिधन का दाले' (द) ब्राह्मी के 'पसे, 'ते'(त) 'थ' से (कुछ कुछ), 'पॅन' (प) 3'से, 'साधे' (स)'क' से (कुछ कुछ) भार 'तान्त ) 'क' से (ठीक) मिलता हुश्रा ६. यह समानता डीक वैसी ही है जैसी कि ऊपर (पृ.२० में) बतलाई हुई वर्तमान अंग्रेज़ी शरप (छापे के अक्षरो)के १० अक्षरो की बाली के १० अक्षरों से. ग्रीक धीरा (थ) फिनिशिअन् 'तेथ' से निकला है जिसका मूल उभारण'' था और उसीस अरबी का 'तोय' (1) निकला. ग्रीक में 'त' का उधारण न होने से फिनिशिनन् 'सो'का ग्रीक में टाओ (2) ममाया गया और तेथ को धीटा(थ), फिनिधिमन में ''या'ध' का उचारयाही था. Aho! Shrutgyanam
SR No.009672
Book TitleBharatiya Prachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar H Oza
PublisherMunshiram Manoharlal Publisher's Pvt Ltd New Delhi
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy