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________________ भारतवर्ष में लिखने के प्रचार की प्राचीनता. छांदोग्य उपनिषद्' में 'अक्षर' शब्द मिलना है तथा 'ई, 'ऊ' और 'ए' स्वर, ईकार, ऊकार और एकार शब्दों से मचित किये हैं और स्वरों का संबंध इंद्र से, ऊष्मन् का प्रजापति से और स्पर्शवणों का मृत्यु से बतलाया है". ऐसे ही तैत्तिरीय उपनिषद् में वर्ण और मात्रा का उल्लेख मिलना ऐतरेय आरण्यक में ऊष्मन्, स्पर्श, स्वर और अंतःस्थ का; व्यंजन और घोष' का; णकार और षकार (मूर्धन्य) के नकार और सकार (दंत्य) से भेद" का नया 'संधि' का विवेचन मिलता है. ये सब बहुधा शांखायन मारण्यक में भी हैं. ऐतरेय ब्राह्मण में 'ॐ' अक्षर, को प्रकार, उकार और मकार वणों के संयोग से बना हा बतलाया है". शतपथ ब्रामण में 'एकवचन,'पहुवचन" तथा नीनों लिंगों के भेद का विवेचन मिलना है. तैत्तिरीय संहिता में ऐंद्रवायव नामक ग्रह (सोमपात्र) दोनों देवताओं (इंद्र और वायु) को एक ही दिये जाने के कारण का वर्णन करते समय लिखा है कि '[पहले धापी अस्पष्ट और अमियमित (विना व्याकरण के) थी. देवताओं ने इंद्र से कहा कि तुम इसका हमारे लिये व्याकरण (नियमबंधन) कर दो. इंद्र ने कहा कि मैं [इस काम के लिये यह वर मांगता है कि यह (सोमपात्र) मेरे तथा वायु के लिये एक ही लिया जाय. इससे पंद्रवायव ग्रह शामिल ही लिया जाना है, इंद्र ने वाणी को बीच में से पकड़ कर व्याकृत किया. इसलिये वाणी व्याकृत (व्याकरणवाली, नियमबद्ध) कही जाती है. यही कथा शतपथ ब्राह्मण में भी मिलती है परंतु उसमें 'वि+या+कृ' धातु के स्थान पर 'निर + बच्' धातु से बने हुए 'निर्वचन' और 'निरुक्त' शब्द काम में लिये हैं, और यह कहा है कि इंद्रने पशु, वयम् (पक्षी) और सरीसृपों (रैंगनेवालों) की वाणी को छोड़ कर ६. पाणिनि के सूत्रपाठ में एक जगह (१.४.७६) और गणपाठ में दो जगह ( ऋगयनादि १.३.७३, और वेतनादि ४.४ १२ मै) उपनिषद शब्द पाता है. २. रिकार रनि चार प्रसाब रति यस सत्मादिरिम र यथार (छांदोग्य उप.२.१.). 'अक्षर' शदनो संस्कृत के प्राचीन साहित्य में दोनों अर्थ में मिलता है अर्थात् ध्वन्यात्मक (उश्चारित) और संकेतात्मक । लिखित ), परंतु 'वर्ण' शब्द केवल सकतात्मक चिश के लिये 'वर्ण' धातु से-रंगना या बनाना) प्राता है और ईकार, ऊकार आदि में 'कार' ('कृ'धातु से करना) केवल वर्ण के लिये ; अतएव 'वर्ण' श्रीर 'कार' प्रत्ययवाले शब्द लिखित संकेतो के ही सूचक है. ३. निरोकार: चादित्य कारो निसन कारः (छांदोग्य उप.१.१३). .. सरेंसरा तन्द्रयात्मानः जमाणः प्रमायरामामः सम्पमा मोसममः यदि सत्यपाल केशर छांदोग्य ५. वरकरः। माका बलम् (तत्तिरीय उप.११). १. मस्य तस्मात्मनः प्राव नथमकपमस्थोनि मकर मजामः स्वरूप मानमत्यदन्य पदमनस्था कर्माम ऐ. मा. ३२.१). .. तस्य बानि कमामि मष्टर घो घोर मचात्मा य कषमार के प्राण (ऐ.पा.२.२.४) . सपदि विचिकत्सेत्सवकारंजाबीपकरारपति''''सपकारवायचषकारारमि (ये.पा.३.२.६). १. पूर्वमेवारपूर्वकपमुरमुत्तररूपं योऽवकारः पूर्वको तरारे अमारे वेन मग्धि बियल येन सरासर विजामान 'माचामा बिभबने..संधिविज्ञपरी सास (पे.पा. ३.१.५), सेभ्योऽभिसयसरी बजायनाकार उकारी मकार इमिनाभेकथा समभर न ददो मिनि (ऐ. प्रा.५.३२). ऐसा ही कौशीतकी ब्राह्मण (२६.५) और आश्वलायम श्रीतसूत्र (१०.४) में भी लिखा मिलता है. २१. यो मेकरोन परमं वाहालि (शतपथ ब्रा. १३.५.१.१८). १२. शारिक्षिता का सपत्रीयने नामन्यः स्पीनामन्यो अपं सक नामन्य में पाकिस्तानि च समानि पुरुषारानि नामानि चौमामालिनपुंजकबामानि (शतपथ ब्रा. १०.५.१.२). बाकस म परस्त्री पुमानमर्पसक (शतपथ बा. १०.५.१.३). १. बापराधपवासानदत ने. रेवा दमकन् 'रमा मो याकुरु रति सोऽमोहर ले मना चेक बाब भरमाता रति तस्मारडगावः सा गमते. कामिन्द्रो मचत इपक्रम्य याबरोनमारिय वाहता रामायके. सरकारसलदिन्द्राय मदतो ..... (तैत्ति . सं.६.५.७). Aho! Shrutgyanam
SR No.009672
Book TitleBharatiya Prachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar H Oza
PublisherMunshiram Manoharlal Publisher's Pvt Ltd New Delhi
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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