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________________ भारतीय संवत्. १८६ उत्तरी हिंदुस्तान के शिलालेखादि में बार्हस्पत्य संवत्सर लिखे जाने के उदाहरण बहुत ही कम मिलते हैं परंतु दक्षिण में इसका प्रचार अधिकता के साथ मिलता है. लेखादि में इसका सबसे पहिला उदाहरण दक्षिण के चालुक्य ( सोलंकी ) राजा मंगलेश ( ई. स. ५६१-६१०) के समय के बादामी ( महाकूट ) के स्तंभ पर के लेख में मिलता है जिसमें 'सिद्धार्थ' संवत्सर लिखा है? २३ --- प्रपरिवृत्ति संघरसर. ग्रहपरिवृत्ति संवत्सर ६० वर्ष का चक्र है जिसके ६० वर्ष पूरे होने पर फिर वर्ष १ से लिखना शुरू करते हैं. इसका प्रचार बहुधा मद्रास इहाते के मदुरा जिले में है इसका प्रारंभ वर्तमान कलियुग संवत् ३०७६ ( ई. स. पूर्व २४ ) से होना बतलाते हैं. वर्तमान कलियुग संवत में ७२ जोड़ कर ६० का भाग देने से जो बचे वह उक्त चक्र का वर्तमान वर्ष होता है; अथवा वर्तमान शक संवत् में ११ जोड़ कर ६० का भाग देने से जो यथे वह वर्तमान संवत्सर होता है. इसमें सप्तर्षि संवत् की नाई वर्षों की संख्या ही लिखी जाती है. २४ - सौर वर्ष. सूर्य के मेष से मीन तक १२ राशियों के भोग के समय को सौर वर्ष कहते हैं. सौर वर्ष बहुधा ३६५ दिन, १५ घड़ी, ३१ पल और ३० विपल का माना जाता है ( इसमें कुछ कुछ मत भेद भी है ). सौर वर्ष के १२ हिस्से किये जाते हैं जिनको सौर मास कहते हैं. सूर्य के एक राशि से दूसरी में प्रवेश को संक्रांति ( मेष से मीन तक ) कहते हैं. हिंदुओं के पंचांगों में मास, पक्ष और तिथि आदि की गणना तो चांद्र है परंतु संक्रांतियों का हिसाब सौर है. बंगाल, पंजाब आदि उत्तर के पहाड़ी प्रदेशों तथा दक्षिण के उन हिस्सों में, जहां कोल्लम् संवत् का प्रचार है, बहुधा सौर वर्ष ही व्यवहार में खाता है. कहीं महीनों के नाम संक्रांतियों के नाम ही हैं और कहीं चैत्रादि नामों का प्रचार है. जहां चैत्रादि का व्यवहार है वहां मेष को वैशास्त्र, वृष को उयेष्ठ आदि कहते हैं. सौर मान के मासों में १ से २६, ३०, ३१ या ३२ तक दिनों का ही व्यवहार होता है, तिथियों का नहीं. बंगालबाले संक्रांति के दूसरे दिन से पहिला दिन मिनते हैं और पंजाब आदि उत्तरी प्रदेशों में यदि संक्रांति का प्रवेश दिन में हो तो उसी दिन को और रात्रि में हो तो दूसरे दिन को पहिला दिन ( जैसे मेषादिन १, मेषगते १, मेवप्रविष्टे १ ) मानते हैं. २४- चांद्र वर्ष. दो चांद्र पक्ष का एक चांद्र मास होता है. उत्तरी हिंदुस्तान में कृष्णा १ से शुक्ला १५ तक ( पूर्णिमांत ) और नर्मदा से दक्षिण में शुक्ला १ से अमावास्या तक ( अमांत) एक चांद्र मास माना उदाहरण - शक संवत् १८४० में बार्हस्पत्य संवत्सर कौनसा होगा? १८४०+१२०२८५२. ३०, शेष ५२ इसलिये वर्तमान संवत्सर ५९ वां कालयुक्त. गत शक संवत् १८४० कलियुग संवत् (१८४०+३१७१= ) ५०१६, २०१६+१२=५०३३, ५=८१, शेष ५१ गत संसर : इस लिये वर्तमान = ५२ वां कालयुक्त संवत्सर. १. उत्तरोत्तर प्रवर्द्धमानराज्य वर्षे प्रवर्त्तमाने सिद्धार्थे वैशाखपीयर्णमास्याम् (ई. एँ, जि. १६, पृ. १८ के पास का लेट ). ९. मूल सूर्यसिद्धांत के अनुसार ( पंचसिद्धांतिका ) २. भूल गणना अमांत हो ऐसा प्रतीत होता है. उत्तरी भारतवालों के वर्ष का एवं अधिमास का प्रारंभ शुक्ला १ से होना तथा श्रमावास्या के लिये ३० का अंक लिखना यही बतलाता है कि पहिले मास भी वर्ष की तरह शुक्ला १ से प्रारंभ हो कर अमावस्या को समाप्त होता होगा. Aho! Shrutgyanam
SR No.009672
Book TitleBharatiya Prachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar H Oza
PublisherMunshiram Manoharlal Publisher's Pvt Ltd New Delhi
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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