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________________ भारतीय संपत्. ऐसा पाया नहीं जाता. इस लिये उपर्युक ई. स. १६३ की घटना गांगेय संवत् ८७ से कुछ पूर्व की होनी चाहिये. यदि ऊपर के दोनों अनुमान ठीक हो तो गांगेय संवत् का प्रारंभ ई, स. (१६६-८७ =) ५७६ से कुछ पूर्व अर्थात् ई. स. ५७० के पास पास होना चाहिये, परंतु जब तक अन्य प्रमाणों से इस संवत् के प्रारंभ का ठीक मिणेय महोतब तक हमारा अनुमाम किया सुमा इस संबत् के प्रारंभ का यह सन् भी अनिश्चित ही समझना चाहिये. गांगेय संबत्वाले दानपत्रों में सबसे पहिला गांगेय संवत् ८७ का और सबसे पिछला ३५१ का है. यह संवत् ३५० वर्ष से कुछ अधिक समय तक प्रचलित रह कर भस्त हो गया. १२-हर्ष संवत् यह संपत् थानेश्वर के पैसवंशी रामा हर्ष ( श्रीहर्ष, हर्षवर्द्धन, शीलादिस्य) के राज्यसिंहासन पर बैठने के समय से चला हुमा माना जाता है परंतु किसी लेख में इस संवत् के साथ हर्ष का नान सुहामाय तक नहीं मिला. स्वयं राजाहर्ष के दोनों दानपलों में भी केवल 'संपत'ही लिखा है. मल्बेरुनी लिखता है कि 'मैंने कश्मीर के एक पंचांग में पता है कि श्रीहर्ष विक्रमादित्य से ६६४ वर्ष पीछेमार यदि मस्येही के इस कथन का अर्थ ऐसा समझा जाये कि विक्रम संवत् ६६४ से हर्ष संवत् का प्रारंभ हुमा है तोहर्ष संवत् में ६६३ जोड़ने से विक्रम संवत् तथा ६०३-७ जोरने से ईसवी सन होगा. नेपाल के राजा अंशुवर्मन के लेख में संवत् ३४ प्रथम पौष शुक्ला २ लिखा है. संभव है कि जह लेख का संवत् हर्ष संघत् हो. कैंब्रिज के प्रोफेसर ऍडम्स और विएना के डॉक्टर आम ने हर्ष संयात् • ई. स. ६०६ (वि. सं. १६३ ) मान कर गणित किया तो 'ब्रह्मसिद्धांत के अनुसार ई. स. ६४० मर्थात् वि. सं १९७ में पौष मास अधिक माता है. इससे भी वि. सं. और हर्ष संवत् के बीच का अंतर (३६७.३४%) ६६३ तथास. और हर्ष संवत् का अंतर ३०६ माता जैसा कि ऊपर लाया गया है. यह संवत् पहुधा संयुक्त प्रदेश तथा नेपाल में करीब ३०० वर्षे प्रचलित रह कर अस्त हो गया, भल्बेनी ने विक्रम संवत् १०८८ के मुताधिक जिस भीहर्ष संवत् १४८८ का होना लिया है (देखो, अपर प. १७५)ह इस वर्ष संवत् से मिल होना चाहिये परंतु उसका प्रचलित होना किसी शिलालेख, दानपत्र या पुस्तक से पाया नहीं जाता. - - का एक होना अब तक कहीं लिखा नहीं मिला. दूसरी भापति यह है दि. उस वामपत्र में लिखे हुए राज्यवर्ष २० को डॉ. फ्लीट ने उक सामंत का राज्यवर्ष मानकर उसके राज्य (शासन)का प्रारंभ शक संवत् ( ५३२-२००) ५१२ अर्थात् ई.स. ५० होना स्थिर कर वहीं से गांगेय संवत् का प्रारंभ मान लिया है, परंतु रेवती बीप मंगलीहर में ही विजय किया धा (गी। सो. प्रा. पृ. २३) स लिये उकवानपत्र का राज्यषर्ष उक्त सामंत का नहीं किंतु उसके स्वामी मंगभीश्वर का ही होना चाहिये जैसा कि डॉ० सर रामकृष्ण गोपाल भंडारकर का मानना है. सोसरी बात यह है कि उक सामत का कोकण से गंजाम जिले में जाकर मषीन राज्य स्थापित करना मानने के लिये भी कोई प्रमाण नहीं मिलता. पेसी दशा मे डॉ. फ्लीट का गगिय संवत्संबंधी कथन स्वीकार नहीं किया जा सकता. ६. बलसंडा से मिले हुए राजा हर्ष के कान पत्र में 'संवत् २० १ (२२) कार्तिक पदि १' (. जि. पृ.२११) और मधुपम से मिले हुए दानपत्र में 'संवत् २० ५ (२५) मार्गशीर्षत्रादि ( जि. १.१.७९) लिकाई. ३. संवत् १०४(318) प्रथमपोषकदितीयायाम् (की लि... पु. ७५, लेखसंसा.), Aho! Shrutgyanam
SR No.009672
Book TitleBharatiya Prachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar H Oza
PublisherMunshiram Manoharlal Publisher's Pvt Ltd New Delhi
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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