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________________ भारतीय संपत्. ११ अन्वेस्नी लिखता है कि 'विक्रमादित्य ने शक राजा को परास्त कर यह संवत् पक्षाया। इस प्रकार इसके प्रबलित किये जाने के विषय में भिन्न भिन्न मत है. पहिले पहिल यह संवत् काठियावाड तथा कच्छ से मिले हुए पश्चिमी चत्रपों के शिका संवत् ५२ से १४३ तक के शिलालेखों में तथा उन्हीं के सिक्कों में, जो शक] संवत् १००(ई.स. १७) के पास पास से लगा कर ३१० (ई.स. ३८८) से कुछ पीछे तक के हैं, मिलता है. उक शिलालेखों में केवल 'वर्षे (संवत्सरे) लिखा मिलता है, 'शक' भादि कोई माम 'बर्षे' (संवत्) के साथ जुगाभा नहीं है, और सिकों में तो कही मिलते है ('वर्षे' भी नहीं.) संस्कृत साहित्य में इस संवत् के साथ 'शक' नाम जुड़ा हुमा (शककाल) पहिले पहिल' बराहमिहिर की 'पंचसिद्धांतिका' में शक संवत् ४२७५ (ई.स. ५०५) के संबंध में मिलता है, और शक संवत् ५००(ई.स. ५७८) से लगा कर १२६२ (ई.स.१३४०) तक के शिलालेखों और दामपत्रों में 'शकनृपतिराज्याभिषेकसंवत्सर', 'शकनृपतिसंवत्सर', 'शकनृपसंवत्सर, शकपकाल', शकसंवत्', 'शकवर्ष', 'शककाल' ११, 'शककालसंवत्सर'१२, 'शक' और 'शाक'१० शन्दों का प्रयोग इस संवत् के वास्ते किया हुमा मिलता है जिससे पाया जाता है कि ई. स. ५०० के पास पास से लगा कर शक संवत् १२६२ (ई.स. १३४०)तकतो यह संवत् किसी शक राजा के राज्याभिषेक से चला दुभा या किसी शक राजा अथवा शकों का पलाया दुभा माना जाता था और उस समय तक शालिवाहन का नाम इसके साथ नहीं जुड़ा था. १. सा . जि २, पृ. ६. ५. राहो पाटनस समोतिकपुत्रस राको रुद्रदामस जयदामपुत्रास वर्षे द्विपंचाशे ५९२ फागुणबहुलस द्वितीय बी २ मदनेन किहलपुत्रेण. बहराज्य के अंधौ गांव से मिले हुए हापों के लेखों की स्वर्गीय भाचार्य वक्षमजी हरिदत्त की तय्यार की कापों पर से. राको महाक्षत्रएस्प गुरुभिरभ्यस्तनाम्नो बर्षे विसप्ततितमे ७०२ ( महाशप बद्रदामन के गिरनार के पास के अशोक लेखापाले बहान पर के लेख ले.प. जि.८, पु.१२). .. सिंहसूरिरचित 'लोकषिमाग' नामक संस्कस गध में उक्त पुस्तक का शमाद (शक संवत् ) ३. में बनना लिखा(संवत्सरे तु वाविप कांचीरासिंहवर्मयः । भगीत्यग्ने राकाम्दानां सिझमेत छतत्रये ॥ (मोक्षषिमाग नामक ११ प्रकरण के अंत की प्रशस्ति, श्लोक ४) परंतु यह मूल मंथनहीं किंतु सर्मनदि नामक मुनिनाए प्राकृत ग्रंथका परिषरित संस्कृत अनुवाद भीर स.की ग्यारहवीं शताब्दी के पीछे का बना तुमा क्यों किसमें यतिवृषमरचित 'त्रिलोकपविशति,' राष्ट्रका राजा भमोघवर्ष के समय अर्थात् ई.स.कीबी शताब्दी के बने हुए उत्तरपुराण' तथा स.की २१ीं बतावीकेमास. पास के बने हुए मेमिचंद्ररचित 'त्रिलोकसार' से भी श्लोक उजत किये हुए मिलते है संभव है फिसर्वमंदिका मूल प्राकृत अंध शक संवत् १८० में बना हो, परंतु उसमे इस संवत् के साथ 'शक' नाम माहुमा था पा नहीं सक जप तक मूल पंधन मिलभाये तब तक निस्चयनहीं सकता. ऐसी दशा में ११वीं शताब्दी के पीछे बने तुप लोकषिभाग' के 'सकाम' को शक संवत् का सबसे प्राचीन उमेख नहीं कह सकते. ४. सप्ताश्विवेदसंख्यं शककालमपास्य चेलशुक्लादी (पंचसिशांतिका १।८. देखो, ऊपर पृ. ११६, रिप्पय *. ५. शकनृपतिराज्याभिषेकसंवत्सरेण्यतिक्रांतेषु पञ्चसु शतेषु (इ. जि. १०, पृ. ५८ के पास का बेट) . शकनृपतिसंवत्सरेषु चस्त्रिाधिकेषु पञ्चस्वतीतेषु भाद्रपामावास्यायां सूर्यग्रहणनिमित्तं (ई. जि. ६, ७३ ). .. एकनृपसंवत्सरेषु शरशिरिखमुनिषु व्यतीतेषु जे(ज्ये)टमासशुरूपचदरम्यां पुष्यनक्षले चंद्रवारे (६. जि. १२. पृ. १६). ८. गकनृपकालातीतसंवत्सरस(ग)तेषु सप्तमु(स) (षो)दयोचरेषु वैशाखव(4)हलामावास्पामावित्पाहणपर्वहि (.: जि. ३, १०) २. शकसंवत् ८१२ वैशाखशुद्धपीयर्णमास्यां महावैश्याल्यां (.: जि. १, पृ. ५६), १. एकादयोचरषट्छतेषु शकवर्षेष्यतीतेषु....कात्तिकपौरर्णमास्यां (1.4 जि.६, पृ. ६). ११. सप्तस(प)त्या नवत्या च समायुक्तेसु(७) सप्तसु [1] (श)ककाळे(जे) श्व(ष्म तीतेषु मन्मपाइयवत्सरे (ज. प. सो. बं. जि. १०, १९. पंचसप्तत्यधिकशककालसंवत्सरशतवटूके व्यतीते संवतात) १७५....माघमासरथसप्तभ्यां (ई. शि. ११, पृ. १९९). ११. एक १९५७ मन्मथसेक्स्सरे श्रावहाबहुल ३.गुरो (की लि.ई.स. पू. ६३, लेखसंख्या ३४८). १४. शाके ११२८ प्रभवसंवत्सरे श्रावणमासे पोपर्णमास्वां ( जि. पू. ३४३). Aho! Shrutgyanam
SR No.009672
Book TitleBharatiya Prachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar H Oza
PublisherMunshiram Manoharlal Publisher's Pvt Ltd New Delhi
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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