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________________ लेजमसामग्री १५५ के लिये पीपल की लाख को, जो मन्य वृदों की लाख से उसम समझी जादी है, पीस कर मिट्टी की हरिमा में रक्खे हुए जल में डाल कर उसे आग पर चढ़ाते हैं. फिर उसमें मुहागा और लोरपीस कर डालते हैं. उबलते उपलते जब लाख का रस पानी में यहां तक मिल जाता है कि कागज पर उससे गहरी लाल लकीर बनने लगती है तब उसे उतार कर छान लेते हैं. उसको चलता (मबहक) कहते हैं. फिर तिलों के सेल के दीपक के कजल को महीन कपड़े की पोटली में रख कर अलते में उसे फिराते जाते हैं जब तक कि उससे सुंदर काले भदर बनने न लग जावें. फिर उसको दवात (मसीभाजन) में भर लेते हैं. राजपूताने के पुस्तकलेखक भय भी इसी तरह पकी स्याही बनाते हैं. संभव है कि ताड़पत्र के पुस्तक भी पहिले ऐसी ही स्याही से लिखे जाते हों. कची स्याही कजल, कत्था, वीजापोर और गोंद को मिला कर बनाई जाती है परंतु पत्रे पर जल गिरने से स्याही फैल जाती है और चौमासे में पत्रे परस्पर चिपक जाते हैं इस लिये उस. का उपयोग पुस्तक लिखने में नहीं किया जाता. भूर्जपत्र ( भोजपत्र ) पर लिखने की स्याही बादाम के छिलकों के कोयलों को गोमूत्र में उचाल कर मनाई जाती धी'. भूर्जपत्र उष्ण हवा में जल्दी खराब हो जाते हैं परंतु जब में परे रहने से थे बिलकुल नहीं बिगड़ते इस लिपे करमीरवाले जब मैले भूर्जपत्र के पुस्तकों को साफ करना चाहते हैं जब उनको जल में डाल देने हैं जिससे पत्रों एवं अधरों पर का मैल निकल कर वे फिर स्वच्छ हो जाते हैं और न स्याही हलकी पड़ती है और न फैलती है. मूर्जपत्र पर लिखे हुए पुस्तकों में कहीं अक्षर आदि अस्पष्ट हों तो ऐसा करने से भी स्पष्ट दीखने लग जाते हैं: काली स्याही से लिखे हुए सब से पुराने अक्षर ई. स. पूर्व की तीसरी शताब्दी तक के मिले हैं: १. बूलर की कश्मीर आदि के पुस्तकों की रिपोर्ट, पृ. ३० २. द्वितीय राजतरंगिणी का कर्ता जोनराज अपने ही एक मुकदमे के विषय में लिखता है कि '[ मेरे दादा लोलराज ने किसी कारण से अपनी दस प्रस्थ भूमि में से एक प्रस्थ भूमि किसी को बेची भीर अपने नोनराज श्रादि बालक पुत्रों को यह कह कर उसी वर्ष वह मर गया. नीनराज आदि को असमर्थ देख कर भूमि खरीदनेवाले एक के बदले जबर्दस्ती से दसों प्रस्थ भोगते रहे और उसके लिये उन्होंने यह जात बना लिया कि चियपत्र (बैनामे ) में लिखे हुए भूषस्थमेकं विकीतं' में 'म' के पूर्व रेखारूप से लगनेवाली 'ए' की मात्रा' को 'द' और 'म'को 'श' बना दिया, जिससे विकयपत्र में भूमस्थमेक' का भूप्रस्थदशक' हो गया. मैंने यह मामला उस राजा । जैनोलामदीन जैन-उल-प्रावदीन ) की राजसभा में पेश किया तो राजा ने भूर्जपत्र पर लिखे हुए वियपत्र को मंगवा कर पढ़ा और उसे पानी में डाल दिया तो नये अक्षर धुल गये और पुराने ही रह गये जिससे भूप्रस्थमेक' ही निकल पाया इस [ न्याय ] से राजा को कीर्ति, मुझको भूमि, जाल करनेवालों को श्रद्भत दंड, प्रजा को सुख और दुष्टों को भय मिला (जोनराजन राजतरंगिणी, श्लोक १०२५-३७) सले यह पाया जाता है कि या तो कश्मीरवाले तीन पीढ़ी में ही पक्की स्याही बनाने की विधि भूल गये थे, या भूर्जपत्र पर की स्याही जितनी पुरानी हो उतने ही अक्षर रद हो जाते थे या अधिक संभव है कि पंडित लोलराज की पुस्तक लिखने की स्याही. जिससे विक्रयपत्र लिखा गया था, पक्की धी और दूसरी स्याही, जिससे जाल किया गया, कची थी. . सांची के एक स्तूप में से पत्थर के दो गोल डिब्य मिले हैं जिनमें सारिपुत्र और महामोगलान की हडियां निकली है. एक रिबे के दकन पर 'सारिपुतस' खुदा है और भीतर उसके नाम का पहिला अक्षर 'सा' स्याही से लिखा हुमा है. दूसरे --- ----- ------- शारदा (कश्मीरी) एवं अन्य प्राचीन लिपियों में पहिल की मात्रा का चिज छोटी या बड़ी खड़ी लकीर भी था जो व्यंजन के पहिले लगाया जाता था ( देखा, लिपिपत्र २८ मे 'शे'.२६ मे दे':३०में दिये हुए अरिगांव के लेरा के अक्षरों में 'ते'). + कश्मीरी लिपि में 'म' और 'श' में इतना ही अंतर है कि 'म' के ऊपर सिर की लकीर नहीं लगती और 'श' के खगती है (देखो. लिपिपत्र ३१), बाकी-कोई भेद नहीं है. Aho! Shrutgyanam
SR No.009672
Book TitleBharatiya Prachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar H Oza
PublisherMunshiram Manoharlal Publisher's Pvt Ltd New Delhi
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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