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________________ १४६ प्रीलिपिमाला. मंडलों के पद पर बने हुए रंगीन नको तथा 'मातृकास्थापन', 'ग्रहस्थापन' के सादे नश्ये मिलते हैं जिनके प्रत्येक को में स्थापित किये जानेवाले देवता आदि का नाम स्याही से यथास्थान दिला रहता है. राजपूताने में 'भडती' या 'गुरडे' लोग कपड़े के लंबे लंबे खरड़ों पर लिखे हुए पंचांग रखते हैं जिनमें देवताओं, अवतारों आदि के रंगीन चित्र भी होते हैं. वे गांवों और खेतों में फिर कर जहां के लोगों को पंचांग सुना कर और उनके साथ के रंगीन चित्रों का हाल कह कर अपनी जीविका चलाते हैं. दक्षिण में माईसोर आदि की तरफ के ब्यौपारी लोग कपड़े पर इमली की गुठली की लेई लगा कर पीछे उसको काला करते हैं और उससे अपने हिसाब की 'वही' बनाते हैं जिसको 'तिम्' कहते हैं और उसपर खड़िया से लिखते हैं. ऐसे दो तीन सा वर्ष तक के पुराने सैंकड़ों कहिते शृंगेरी के मठ में मिले हैं। जिनमें मठ के हिसाब, शिलालेखों और ताम्रtat wife की नकलें, तथा गुरुपरंपरा आदि बातें लिखी हुई हैं. पाटण (अपहिलवाड़ा) के एक जैन पुस्तकभंडार में श्रीममरिरचित 'धर्मविधि' नामक पुस्तक, उदयसिंह की दीक्षा सहित, १३ इंच लंबे और ५ इंच चौड़े कपड़े के ६३ पत्रों पर लिखा हुआ विद्यमान है। कपड़े के प चना कर उनपर पुस्तक लिखे जाने का केवल यही एक उदाहरण मिला है. लकड़ी का पाटा और पारी. भारतवर्ष में पत्थर की स्लेटों के प्रचार के पहिले प्राचीन काल से ही विद्यार्थी लोग पाटों पर लिखना सीखते थे. ये पाटे लकड़ी के होते थे और चारों कोनों पर चार पाये उसी लकड़ी में से निकाले हुए होते थे, पाठों पर मुलतानी मिट्टी या खड़िया पोत कर खुला देते थे. फिर उनपर ईंटों की सुरली बिछा कर तीखे गोड मुख की लकड़ी की कलम से, जिसको राजपूताने में 'बरतना ' 'बा' (वर्णक) कहते हैं, मिलते थे, अपादों के स्थान में स्लेटों का प्रचार हो गया है तो भी कितने ही ग्रामीण पाठशालाओं के विद्यार्थी अब तक पार्टी पर ही 'पहाड़े', 'हिसाब आदि लिखते हैं. उपोतिषी लोग अब तक बहुधा जन्मपत्र और वर्ष कल आदि का गणित पार्टी पर कहने के बाद कागजों पर उतारते हैं. बच्चों की जन्म कुंडलियां तथा विवाह के समय लग्न कुंडलियां प्रथम पाटे पर गुलाल बिछा कर उसपर ही बनाई जाती हैं. फिर वे कागज़ पर लिखी जाकर यजमानों को दी जाती हैं. लकड़ी की बनी हुई पतली पाटी (फलक ) पर भी प्राचीन काल में विद्यार्थी लिखते थे. बौद्धों की जातक कथाओं में विद्यार्थियों के फड़क का उल्लेख मिलता है. अब भी उसपर मुलतानी मिट्टी या खड़िया पोलने बाद स्याही से लिखते हैं. अब तक राजपूताना आदि के बहुत से दुकानदार विक्री या रोकड़ का हिसाब पहिले ऐसी पाडियों पर लिख लेते हैं, फिर अवकाश के समय उसे बहियों में दर्ज करते हैं. विद्यार्थियों को सुंदर अक्षर लिखना सिखलाने के लिये ऐसी पाटियों को बहुधा एक तरफ़ लाल और दूसरी ओर काली रंगवाते हैं. फिर सुंदर अक्षर लिखनेवाले से उनपर हरताल से वर्णमाला, बारखडी ( द्वादशाक्षरी ) यदि लिखवा कर उनपर रोग्रन फिरा देते हैं सबसे छोटा १ फुट ५ इंच लंबा और उतना ही चौड़ा, और सबसे बड़ा १४ फुट लंबा और ५ फुट ७ इंच बड़ा है. कितने ही अन्य स्थानों में भी ऐसे अनेक पट देखने में आये हैं. 1. माइसोर राज्य की आकिलोजिकल सर्वे की रिपोर्ट, ई. स. १६१६, पृ. १८. १० पी. पीटर्सन की मुंबई इहारी के संस्कृत पुस्तकों की खोज की पांचवीं रिपोर्ट, पृ. ११३. इस प्रकार गणित करने की खाल को ज्योतिष शास्त्र के ग्रंथों में 'धूलीकर्म' कहा है. 6. देखो ऊपर पू. ३, और इसी प्रठ का टिप्पण २. Aho! Shrutgyanam
SR No.009672
Book TitleBharatiya Prachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar H Oza
PublisherMunshiram Manoharlal Publisher's Pvt Ltd New Delhi
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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