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________________ प्राचीनलिपिमाना. रहोकों में लाने में कठिनता रहती थी जिसको सरल करने के लिये संभवत: शालोंकेमाचापोंने संपावक सांकेतिक शब्द स्थिर किये हों. ये सांकेतिक शब्द मनुष्य के चंग, इंदों अथवा उनके परणों के महर, देवता, साहित्य के अंग, प्रह, ममत्र आदि एवं संसार के भनेक निरिचा पदापों की संवा पर से कपित किये गये हैं. प्रत्येक नाम के लिये संस्कृत भाषा में अनेक शब्द होने से प्रत्येक संख्या के लिये कई दाद मिलते हैं जिनमें से कुछ नीचे दिये जाते है•म्प, ख, गगन, माकारा, अंबर, पत्र, वियत्, व्योम, अंतरिक्ष, नभ, पूर्ण, रंभ भादि. मादि, शशि, व विधु, छ, शीतांशु, शीनररिम, सोम, शशांक, सुपारा, मन, भूमि, चिनि, बरा, रा, गो, पसंपरा, पृथ्वी, एमा, परणी, बसुधा इना.क. मही, रूप, पितामह, नायक, मानुपादि. व्यम, गमला, अस्थिन, नासत्य, इल, कोचन, नेत्र अधि, रवि, रज, नयन, चण, पच, बाह कर, कर्ण, च, भोड, गुल्फ, जानु, जंभा, मय, मंड, युगल, युग्म, अयम, कान, रविद्रो मादि. राम, ण, लिगुण, लोक, त्रिजगत्, सपन, काल, त्रिकाल, विगत, त्रिनेत्र, सहोदरा, अग्नि, पाहि पार :, वैचामर, पहन, तपन, हुताशन, ज्वलन, शिखिन्, माह होतबादि. द, ले, सहा सागर, अधि, जलधि, उदधि, जलनिधि, अंबुधि, केंद्रवर्ण, नामम, पुग, तुर्प, कल, य. भाप, विश (दिशा) बंधु, कोड, वर्ण मादि. ५माण, शर, सापक, पु, भूत, पर्य, प्राण, पोष, अर्थ, विषप, महाभून, तत्प, दिप, रल आदि. रस, अंगा, काय, ऋतु, मासा, दर्शन, राग, भरि, शासतर्क. कारक मादि. नग, ART, मृत, पर्वत, शैल, पद्रि, गिरि, अषि, मुनि, भत्रि, पार, स्पर, पातु, परब, सुरग, वाणि, कंद, धी. कसत्र, भादि. सबसु, महि, नाग, गज, दंति,दिग्गज, हस्तिन् , मातंग, कंजर, बिप, सर्प, तप, सिद्धि, भूति, अनुष्टुभ. मंगल आदि. अंक, नंद, निधि, ग्रह, रंध्र, छिद्र, बार, गो, पवन आदि. १०-दिश, दिशा, माशा, अंगुलि. पंक्ति, ककुभ्, रावणशिरम्, अवतार, कर्मन् मादि. ११-रुद्र, ईश्वर, हर, ईश, भव, भर्ग, शूलिन्, महादेव, अक्षौहिणी भादि. १३-रवि, सूर्य, अर्क, मार्तड, घुमणि, भानु, आदित्य, दिवाकर, मास, राशि, व्यय भादि १३-विश्वेदेवाः, काम, अतिजगती, अघोष आदि. १४-मनु, विद्या, इंद्र, शक्र, लोक आदि. १५=तिधि, घर, दिन, अहन्, पक्ष प्रादि. १०-अप, भूप, भूपति, अष्टि, कला श्रादि. १७-अत्यष्टि. १८-धृति. १६ अतिधृति. २०-नख, कृति. २१= उस्कृति, प्रकृति, स्वर्ग. २२-कृती, जाति. २३ विकृति. २४ - गायत्री, जिन, अहत्, सिद्ध श्रादि. २५ = तत्व. २७-नक्षत्र, खडभ मादि. ३२-दंत, रद आदि. ३३ - देव, अमर, त्रिदश, सुर भादि. ४०-नरक. ४८-जगती. ४६-तान. Aho! Shrutgyanam
SR No.009672
Book TitleBharatiya Prachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar H Oza
PublisherMunshiram Manoharlal Publisher's Pvt Ltd New Delhi
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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