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________________ तेलुगु-काई लिपि के दानपत्रों के अक्षरों के सिर चौकूट नहीं किंतु छोटी सी बाड़ी लकीर से यने हुए है. इस लिपिपत्र की लिपियों का समय केवल अनुमान से ही लिखा है. लिपिपत्र ४३वें की मूल पंक्तियों का नागरी अक्षरांतर जितं भगवता श्रीविजयपलक्कडस्थामात् परमब्रह्मएयस्य स्वबाह बस्लार्जितोजितक्षावतपोनिधेः विधितसर्वमयांदस्य स्थितिस्थितस्यामितात्मनो महाराजस्य श्रीस्कन्दवर्मणः प्रपौत्रस्याचितशक्तिसिडिसम्पन्नस्य प्रतापोपनतराजमण्डलस्य महाराजस्य वसुधातलैकवीरस्य श्रीवौरवमणः पौनस्य देवहिल लिपिपत्र ४४ वा. यह लिपिपत्र देवगिरि से मिले हुए कदंबवंशी राजा मृगेशवर्मन् ' और कास्थवर्मन् के दानपत्रों से तय्यार किया गया है. इनके अक्षरों के सिर चौकुंटे परंतु भीतर से भरे हुए हैं और कितने ही अक्षरों की आड़ी लकीरें विशेष कर बमदार बनती गई हैं (देखो, मृगशवर्मन् के दानपत्रों में इ,ख, ज, ट, ड, घ, य, भ, म, व और है, और काकुस्थवर्मन् के दानपत्र में इ. स्व, च, द, द, ल मादि), लिपिपत्र ४४ की मूल पंक्तियों का नागरी अक्षरांतर सिद्धम् ॥ अयत्य ईस्त्रिलोकेशः सर्वभूतहिते रतः रागाधरिहरोनन्तीमन्तज्ञानदृगौश्वरः ॥ स्वस्ति विजयवैज[य] त्याः] स्वामिमहासेनमातगणानुद्ध्या(ध्या)ताभिषिक्तानां मानव्यसगोचाणां हारितिपुचाण(णां) अ(प्रा)गिर सो प्रतिकृतम्बाध्य ध्यायचर्चकाना(ना) सहर्मसदंबाना(न) कदंबाना अनेकजन्मान्तरीपार्जितविपुलपुण्यस्कन्धः पाहवार्जित. लिपिपत्र ४५ वा. यह लिपिपत्र चालुक्यवंशी राजा मंगलेश्वर के समय के शक सं. ५०० (ई.स. ५७८ ) के शिलालेख, उसी वंश के राजा पुलुकेशिन (दृमरे ) के हैदराबाद (निज़ाम राज्य में) से मिले हुए शक सं. ५३४ (ई.स. ६१२ ) के दानपत्र और पूर्वी चालुक्य राजा सर्वलोकाश्रय ( विजयसिद्धि, मंगियुवराज ) के राज्यवर्ष दूसरे (ई. स. ६७३) के दानपत्र' से तय्यार किया गया है. मंगलेश्वर १. ये मूल पंक्तियां उम्बुपल्लि के दानपन से हैं. १. ई. जि. ७. ५ के सामने के प्लेट से. प: जि. ६, पृ. २४ र २५ के योच के प्लेटो से. .. ये मूल पंक्तियां मृगेशवर्मन् के दानपत्र से है. . भियनामा' के 'ना' के पीछे ठीक वैमा ही निह है जैसा कि मृगेश बर्मन के दानपत्र से दिये दुए अक्षरों में 'हि'पिसर्ग के नीचे की बिदी के स्थान में पाया जाता है. संभव है कि यह अनुस्वार का चिह हो न कि 'म्'का) जो अक्षर के ऊपर नहीं किंतु मागे घप हो. इस प्रकार का चिङ्ग क्र दानपत्र में तोन जगह मिलता है. अन्यत्र अनुस्वार बानियत चि सर्वत्र अक्षर क ऊपर ही धरा है. ६. यहां भी ठोस यहां चित है जिसका विवेचन टिप्पण ८ में किया गया है. * जि. १०, पृ. ५८ के पास के प्लेट से. म ; जि ६, पृ. ७२ और ७३ के बीच के प्लटों से. . ..जि.८, पृ.२६८ और २३६ के बीच के प्लटों से. Aho! Shrutgyanam
SR No.009672
Book TitleBharatiya Prachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar H Oza
PublisherMunshiram Manoharlal Publisher's Pvt Ltd New Delhi
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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