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________________ पश्चिमी लिपि हैं (देखो 'या' और 'रः) और हलंत अक्षर को उसके पहिले अक्षर के नीचे लिल्ल है (देखो 'पत्' 'शत्' और 'सेत्'). लिपिपत्र ३७ की मूल पंक्तियों' का नागरी अक्षरांतर स्वस्ति वसभि(भौ)तः प्रसभप्रणतामित्राणां मैपकायामगुलबलसपतामण्डलाभोगसंसातासमहारशतलन्धमतापः प्रताप:' प्रतापोपनतदानमामार्जयोपार्जितानुरागोतामोलभूत मिषश्रेणौवकावाप्राज्यभिः(श्री) परमम(मा)ोचरः श्रि(श्री)सेना. पसिमटाईस्तस्य सुलत्यादरजोरणावमतपविचि(पोशातशिरा: लिपिपत्र ३८ यां. यह लिपिपत्र पालीताना से मिले हुए गारुलक सिंहादिस्य के गुप्त सं. २५५ (ई. स. ५७४) के दानपत्र और बलभी के राजा शीलादित्य (पांचवें)के गुप्त सं.४०३ (ई.स. ७२२) के वानपल से प्यार किया गया है. शीलादित्य के दानपत्र में के चार इकड़े किये हैं, जिनमें से नीचे की दो रेखाएं तो दो पिवित्रों के स्थानापन्न हैं और ऊपर की दो तिरछी रेखाएं, सीधी माड़ी लकीर के खमदार रूप के ही हिस्से हैं जो जुड़े हुए होने चाहिये थे. 'ए' का रूप विलक्षण बना है परंतु वह लिपिपल ३७ में दिये हुए 'ए' का त्वरा से लिखा हुमा विकृत रूप ही है. 'ऐ' में ऊपर की स्वमदार माड़ी रेखा का खम के पूर्व का हिस्सा 'ए' के अप्रभाग की बाई मोर जुड़नेवाली रेखा का गोलाईदार रूप ही है और बाकी का भाग 'ए' का है. '' में ऊपर का भाषा भाग 'ल' (दूसरे ) का रूप है और नीचे का आधा भाग 'ल' (तीसरेका कुछ विकृत रूप है. इस तरह दो प्रकार के 'ल' मिलकर यह रूप बना है. लिपिपत्र ३८ की मूल पंक्तियों का नागरी अन्नरांतर भों स्वस्ति फाप्रसवणारप्रसाष्टकसम्मोद्भताम्यक्ष्याभिभूतापहिषाममेकसमरा तसंपातात्यन्त विजयिना(ti प्रभूतयश कोयलझारालमृताध्ययभुवा गारुलकामा पंकशा(वंशा)सुरक्रमेणाविर्भूतो दीनानाधाश्रितार्थिवान्धरजनोपजीव्यमानविमविस्तर तहरिपाक्षीण फाक्षचायतयैका. लिपिपत्र ३६ वा. यह लिपिपत्र त्रैकूटकवंशी राज दर्हसेन के कलरि संवत् २०७ ( ई. स. ४५६ ) के, गर्जरबंशी रणग्रह के कलचुरि सं. ३६१ (ई. स. ६४०) के और दर (दूसरे ) के कलचुरि सं. ३६२ - ये मूत्र पहियां परसन (दूसरे) दानप से ह. २ 'प्रतापः' शब्द पहां पर समापश्पक है १.प.जि.११, ५.१ और के बीच के प्लेटोसे. . ज.ब.ए.सो.मि.१९, पृ. ३६५ के पास के क्षेट AB.से. मूल पक्लिो गालक सिंहादित्य के दामपन से है. ...नि. १०, १.५३ के पास के मेट से. . . जि. प. २१ के पास के मेट से. ....जि.प. और पीच के मेटरों से. Aho! Shrutgyanam
SR No.009672
Book TitleBharatiya Prachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar H Oza
PublisherMunshiram Manoharlal Publisher's Pvt Ltd New Delhi
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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