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________________ Sो निवेदनम् सुप्रसिद्ध कविवर्य उपाध्याय श्रीसमयसुंदरगणि संगृहीत यह "गाथासहस्री" नामक ग्रन्थरन विद्वज्जनोंके विनोदार्थ प्रकाशित किया जा रहा है इनका अस्तित्वसमय सत्रहवाँ (१७) शताब्दी है । श्रीजिनचंद्रसूरिजीके मुख्य शिष्य उ० सकलचंद्रगणि थे ( कल्पसूत्र कल्पलताटीका पृ. ६८२) उनके शिष्य समयसुन्दरजी थे जिन्होने लघुवयमेंही तर्क-व्याकरण-साहित्य वगैरहका इन्होंने अभ्यास करलिया था ओर गुरुमुखसे जैनागमोंका अभ्यासकरके फलखरूप संस्कृतभाषामें ग्रंथोंकी रचना की और बहुतसे स्तवन-रास-चोपाइ वगैरह गुजरातिभाषामें निर्माण किये। __ प्रस्तुत ग्रंय उ० समयसुन्दरजी ने सं. १६८६ में रचा है । यह ग्रंथ पंडित जनोंके मुखकी शोभा रूप तांबुलके सदृश है और व्याख्यानदाताओंके लिये तो बहुतही उपयोगी है ग्रंथकार खुदही इस प्रकार कहते है व्याख्याचातुर्यवान्छा यदि भवति तदा शास्त्रमेतत् समग्रम् , कंठे कृत्वा विशेषाऽवगमपरमार्थ गृहीरवा गुरुतः । व्याख्याकाले विचाले प्रवरमवसर प्राप्य वाच्यं प्रसकं, सभ्येभ्यानां पुरस्तात् चतुरनरचमत्कारकारं च भावि ॥३॥ (पृ. ५०) यदि आप प्रखर वक्ता बनना चाहते हो तो यह सारा ग्रन्थ मुँह जबान करके, गुरुके मुखारविंदसे ग्रन्थका गूढार्थ समझके हरहमेश सभा समक्ष प्रवचन करते समय समयानुसार सुभाषित पद्य बोलनेसे, सज्जनोंके चित्तको ( आप अवश्य ) भाश्चर्य करनेवाले होगे. आभारदर्शन[१] श्रीमोहनलालजी ज्ञानभण्डार (सूरत), [२] श्रीजिनदत्तमूरि ज्ञानभण्डार (सूरत) [३] श्रीजिनदत्तसूरि ज्ञानभण्डार (बम्बई), [४] श्रीजिनकृपाचंद्रसूरि ज्ञानभण्डार (बीकानेर) प्रस्तुतः ग्रन्थरत्न संशोधन करनेमें उपरोक्त भंडारोंकी प्रतियों की सहायता ली गई है अतएव उक्त भण्डारोंके सञ्चालकमहाशयोंको और द्रव्यसहायक सज्जनोंको यहाँपर धन्यवाद दिया जाता है. १ कल्पसूत्रकी कल्पलताटीका जो इसी सीरीझकी ओरसे प्रकाशित हो चुकी है-जिसमें H. D. वेलणकर (प्रो० ऑफ संस्कृत विल्सन कॉलेज, बॉम्बे) महाशयका विद्वत्तापूर्ण लिखा हुआ Introduction है और श्रीयुत मोहनलाल दलीचंद देशाई (B. A. LL B. Adverante) का अति परिश्रमसे लिखा हुआ उपोद्घात दिया गया है इस ग्रंथको देखने से ही इसका महत्व विद्वानोंको अच्छी तरहसे ज्ञात हो सकेगा। २ समयसुन्दरजी महाराज जैसे बाल्यावस्थ में विद्या की ओर प्रेम रखते थे उसी तरह बड़ी अवस्थामें अपने शिष्यों को भी विद्वान बनाने के लिये परिश्रम करते थे। उन्होंने अपने बाल मुनि शेंको बोध देनेके लिये एक खाध्याय भी बनाया था जो इस प्रकार है भणोरे चेलाभाई भणोरे भणो, भण्या मामसने आदर घणो। भण्याने हुए भलो वहगवणो, सखरवस्त्र पहिर ओढणो । पद हुवे वाचक पाठक तणो, बाजोठ उपर बेसणो। भणिया पाखे दुख देखणो, खांधे झोली हाथमें दोहणो (= घडो)। समयसुन्दररो शब्द मानणो, इह परलोक सुहावणो । इति ।। ३ संवत् १७६२ वर्षे कार्तिक बदि पांचमी दिने बुधवारे श्रीमत्पत्तने सालविपाटके श्रीजिनचन्द्रसूरिविजयराज्ये लिखिता प्रतिरियं विनेय पं० रंगविलासेन श्रीरस्तु । ४ संवत् १८.६ मिति वैशाख शुक्ल कादश्यां ११ तिघौ गुरुवारे लि.पतं पं० मतिमंदिरेन इदं पुस्तिका श्रीरस्तु । ५ संवत् १९५६ श्रावण वद १३ पं. रिद्धकर्ण ॥ - - -.. ... "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009671
Book TitleGathasahastri
Original Sutra AuthorSamaysundar
Author
PublisherZaveri Mulchand Hirachad Bhagat Mumbai
Publication Year1940
Total Pages72
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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