SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संथारे के समय आए हुए संदेश' अर्हम् अनशन मौत को आमन्त्रण है। सामान्यतः लोग मौत के नाम से घबराते हैं। नवसारी गुजरात में दीपचंद की माँ व साध्वी कनकश्री, जो अभी मुम्बई में स्वास्थ्य लाभ एवं संघीय कार्य कर रही है, की संसार पक्षीय माँ ने आजीवन संथारे का संकल्प किया है। संथारा अभय की साधना है। संथारा अनाशक्त जीवन का उदाहरण है। संथारा आत्मबल का प्रकटीकरण है। शर्त एक ही है कि भावना उत्तरोत्तर बढ़ती रहे, परिणाम चढ़ते रहे और मोह ममता क्षीण होती रहे। आध्यात्मिक भजन, जप, चौबीसी, आराधना, तेरापंथ प्रबोध आदि का श्रवण करें और समाधि-मृत्यु के अभियान को सफल बनाएं। भाई दीपचंद के लिए मातृऋण से उऋण होने का अवसर है। हिम्मत के साथ माताजी की साहसिक यात्रा में सहयोग करना है। जैन विश्व भारती, गणाधिपति तुलसी दिनांक 8-2-1996 अर्हम् नवसारी से संवाद मिला कि भाई दीपचंद की माताजी सुवटी देवी ने संथारा स्वीकार किया है। यह उनकी आध्यात्मिक सूझबूझ और मजबूत मानसिकता का परिचायक है। जैन धर्म में जीने की तरह मरने की भी कला प्रतिपादित है। इस कला का महत्त्व वे ही समझते हैं जो आत्मानन्द पाना चाहते हैं। श्राविका सुवटी देवी धार्मिक और तत्व को समझने वाली है। उनकी आत्म चेतना सतत ऊर्द्धवमुखी बनती जाए यही मंगल कामना । लाडनूं (ऋषभ द्वार) fatas 9-2-1996 महाश्रमणी कनकप्रभा शरीर पर आत्मा का विजय दीपचन्द की पू. माताजी ने सोलह दिन का संधारा यानी आजीवन अनशनव्रत सानंद सम्पन्न कर समाधि मरण प्राप्त किया। जैसी कि उनकी भावना थी, अंतिम समय में पूर्ण सचेत अवस्था में उन्होंने चौविहार संथारा भी स्वीकार किया। समाधि मरण, यह जीवन साधना की शिखर यात्रा है। उन्होंने हँसते-हँसते इस शिखर पर आरोहण किया। स्वयं धन्य बन गई। परिवार पर गौरवमय स्वर्ण कलश चढ़ा दिया। सुना है, उनके इस अनशन से नवसारी में जैन धर्म और तेरापंथ की जबरदस्त प्रभावना हुई है। ८२ वर्ष की उम्र जरा-जर्जरित और व्याधिग्रस्त शरीर । तन की क्षीण शक्ति पर मन की शक्ति प्रबल विस्मयकारी समता और कष्ट सहिष्णुता यह सब गुरुकृपा और आंतरिक शक्तियों के जागरण से ही संभव है। पुण्यात्माएं ही इस प्रकार का आध्यात्मिक पराक्रम कर सकती हैं। लगता है उनकी आंतरिक शक्तियां प्रखरता से जागृत हो चुकी थी। इसलिए देह में रहते हुए भी देहासक्ति से ऊपर उठकर वे विदेह की साधना में लीन हो गई। उन्हें श्रद्धा, सत्कर्म, त्याग- ग-वैराग और तत्वबोध की अलौकिक ज्योति प्राप्त थी। उसी के सहारे उन्होंने अपने कल्याण का रास्ता प्रशस्त कर लिया। शरीर पर आत्मा विजय की पताका फहरा दी। केन्द्र से प्राप्ति अमृत संदेशों से उन्होंने अध्यात्म ऊर्जा प्राप्त की। परिवारजनों की सेवा और सहयोग उनकी चित्त समाधि में निमित्त बने नवसारी और सूरत का धर्मानुरागी समाज उनकी इस अध्यात्म यात्रा की सफलता में बराबर सहभागी बना रहा । बम्बई के श्रावक-श्राविकाएं भी जुड़ी रहीं, यह साधर्मिक बंधुता और संघीय चेतना का प्रतीक है। संथारे पूर्वक समाधि मरण प्राप्त करना, मृत्यु नहीं महोत्सव है। माटी की काया पर वज्र-संकल्प का दस्तावेज है। इसलिए उनके पीछे शोक संताप का तो सवाल ही नहीं है, बल्कि संस्कार- शंचिता का आदर्श प्रस्तुत करना है। यथाशीघ्र परम पूज्य गुरुदेव तथा आचार्य प्रवर के दर्शन कर, . केन्द्र से नई शक्ति, नयी प्रेरणा प्राप्त करें। दिवंगत आत्मा के चैतन्य-विकास की मंगल कामनाएं अणुव्रत सभागार, मुंबई दि. 21 फरवरी 1996 साध्वी कनक श्री
SR No.009660
Book TitleBane Arham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAlka Sankhla
PublisherDipchand Sankhla
Publication Year2010
Total Pages49
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy