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________________ 编 मंत्र मंत्र विद्या भारत की प्राचीन, पवित्र संपत्ति है। इसमें सबसे पहले हम मंत्र के बारे में जानेंगे। क्योंकि, सामायिक में मंत्र, नमस्कार महामंत्र का बहुत महत्त्व है। मंत्रों का व्यवस्थित ज्ञान, अर्थ जानकर अगर विधिवत तरीके से जाप किया तो अनेक फायदे होते हैं। अब तक हम जान चुके हैं, सामायिक क्या है? कैसे करनी है ? अब हमें सामायिक में जो प्रयोग करना है उसकी जानकारी लेते हैं। इसमें सबसे पहले मंत्र आते हैं। सभी धर्म संप्रदायों में मंत्र परम्परा रही है। अक्षरों के संयोजन विशेष का नाम 'मंत्र' है। शब्द शास्त्र के अनुसार 'मंत्रि गुप्त भाषणे' से 'मंत्र' शब्द बना है। जिसका अर्थ है, 'गुप्त भाषण और रहस्य की साधना' शब्द शास्त्र के अनुसार 'मंत्र' शब्द 'मनू' धातु में त्र प्रत्यय लगाने से बना है। 'मन्य ते ज्ञायते आत्मा देशोऽनेन इति मंत्रः' अर्थात् जिसके द्वारा आत्मा का ज्ञान किया जाए, वह मंत्र है। मंत्र शब्द मंतृ धातु से बना है। इसका अर्थ है गुप्त बोलना । गुप्त अनुभव करना । सब देशों में मंत्र विद्या किसी ना किसी रुप में है। भारत, चीन में विशेषज्ञ हैं। मंत्र एक ऐसा सुक्ष्म किन्तु महत्त्वपूर्ण तत्त्व है, जिसके द्वारा स्थूल पर नियंत्रण, विराट को स्फूर्तिमान रखने का और पिण्ड में ब्रह्माण्ड को देखने की दृष्टि है। मंत्र एक शक्ति है, पूरा विज्ञान है और मंत्र उर्जा है। मंत्र का शाब्दिक अर्थ 'मननात् त्रायते इति मंत्र' जिसका मनन करने से व्यक्ति को त्राण मिलता है। समस्या का समाधान होता है उसे मंत्र कहते हैं। मंत्र ध्वनि के विशिष्ट शब्द होते है। ये ध्वनि विज्ञान पर आधारित होते हैं। बार-बार मनन करना मंत्र । शास्त्रीय मंत्रों का आयोजन अपने आप में अर्थ रखता है। कोई मंत्र हो, यदि उसका अर्थ स्पष्ट नहीं है तो वह शास्त्रीय मंत्र नहीं है। बीज मंत्र का भी अपना अर्थ होता है। मंत्र योग मुख्यतः शक्ति विकास पर आधारित कार्य करता है जीवन में उत्कर्ष के लिए भी मंत्र का उपयोग होता है। मंत्रशक्ति से रोगमुक्ति, धनलाभ, ऊंचा अधिकार प्राप्त होता है। बनें अर्ह कदाचिच्जीवने कष्टं, सौख्यं चापि कदाचन । तत्र समत्वमालंव्यं येन शुद्धिः परा भवेत् ॥ १६ मंत्र अक्षरों की प्रभावक रचना विशेष का नाम है। इससे स्पष्ट और लयबद्ध उच्चारण में जपकर्ता में चारों और कुछ विशिष्ट प्रकार की ध्वनि तरंगे उत्पन्न होने लगती है। शुद्ध और स्पष्ट उच्चारण से मनोग्रन्थियों पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। अर्थात् चेतन मन के स्तर खुलने लगते हैं। मंत्र परम कल्याणकारी होता है और चिन्तन-मनन से निश्चित ही दुःखों से रक्षा होती है। मंत्र एक प्रतिरोधात्मक शक्ति है, मंत्र एक कवच है। मंत्र एक प्रकार की चिकित्सा है। मनन का दूसरा अर्थ पुनः पुनः चिन्तन और उच्चारण है। जिसके पाठ से इष्ट की सिद्धि होती है, उसे भी मंत्र कहा गया है। मंत्र सर्वप्रथम त्रायाविक प्रणाली को प्रभावित करते हैं, फिर क्रमशः मस्तिष्क के ज्ञानकोष्ठ और मानव चेतना के सुक्ष्म भाग को झनझनाता है। भारतीय ऋषियों ने अपनी साधना द्वारा जिन यथार्थताओं का अनुभव किया, उनका संकलन मंत्र के रुप में किया गया है। विचारों की भूमिका मस्तिष्क तक है, जहाँ से विचार स्मृति चिन्तन और कल्पनाओं की पाँखों पर फैलते हैं। मंत्र विचार से सुक्ष्म होता है। वह चेतना के तल पर प्रस्फुटित होता है। मंत्र विकल्प से निर्विकल्प तक पहुँचने की प्रक्रिया है । जैसे औषध के द्वारा रासायनिक परिवर्तन होता है वैसे ही मंत्र के द्वारा रासायनिक परिवर्तन होता है। एक अक्षर का उच्चारण करते हैं, एक प्रकार का रासायन निर्मित होता है जैसे 'र' के उच्चारण से तपमान बढ़ता है, 'ह' के उच्चारण से तपमान घटता है। प्रत्येक वर्ण का अपना प्रभाव है। वायु के कंपन होते हैं। यह कंपन कुछ क्षणों में वायु मण्डल में अन्य तत्व के माध्यम से ब्रह्मांड की परिक्रमा करके अपने अनुकूल तरंगों के साथ मिलकर एक पुंज बनाती है। यह पुंज बहुत ही शक्तिशाली होती है। मंत्र आराधना की निष्पत्तियां मंत्र आराधना की अनेक निष्पत्तियां हैं। वे आन्तरिक और बाह्य भी हैं। मानसिक और शारीरिक भी हैं। पहली निष्पत्ति है मन की प्रसन्नता, चित्त की शुद्धि स्मृति का विकास होता है, आत्मविश्वास बढ़ता है। सारी निष्पात्तियां धीरे-धीरे सामने आती है। इसलिए शीघ्रता न करें। उतावलापन साधना का विघ्न है। साधना मंत्र जाप में, धैर्य अपेक्षित है। बनें अर्हम् जीवन में कभी कष्ट आता है तो कभी सुख उस स्थिति में समता का सहारा लेना चाहिए जिससे परम शुद्धि हो जाए। १७
SR No.009660
Book TitleBane Arham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAlka Sankhla
PublisherDipchand Sankhla
Publication Year2010
Total Pages49
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size57 MB
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