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________________ २८४ श्रीमद्राजचन्द्रजैनशास्त्रमालायां होते हैं । श्रुतकेवलोको केवली पद पानेके लिये आठवें गुणस्थानसे बारहवें गुणस्थान तक एक श्रेणी चढ़ना पड़ती है । श्रुतकेवली चौदह पूर्वके पाठी होते हैं। योग सहित केवलियोंको सयोगकेवली, और योगरहित केवलियोंको अयोगकेवली कहते हैं। सयोगकेवली तेरहवें और अयोगकेवली चौदहवें गुणस्थानवर्ती होते हैं । सिद्धोंको भी केवली कहा जाता है। जैनेतर शास्त्रोंमें भी केवलीको कल्पना पायी जाती है। जिन्होंने बन्धनसे मुक्त होकर कैवल्यको प्राप्त किया है, उन्हें योगसूत्रोंके भाष्यकार व्यासने केवली कहा है। ऐसे केवली अनेक हुए हैं। बुद्धि आदि गुणोंसे रहित ये निर्मल ज्योतिवाले केवली आत्मस्वरूपमें स्थित रहते हैं। महाभारत, गीता आदि वैदिक ग्रंथोंमें भी जीवन्मुक्त पुरुषोंका उल्लेख आता है । ये शुक, जनक प्रभृति जीवन्मुक्त संसारमें जलमें कमलकी नाई रहते हुए मुक्त जीवोंकी तरह निलेप जीवन यापन करते हैं इसीलिये इन्हें जीवन्मुक्त कहा जाता है। बौद्ध ग्रंथों में बुद्धके बत्तीस महापुरुषके लक्षण, अस्सी अनुव्यंजन और दोसौ सोलह मांगल्य लक्षण बताये गये हैं । बुद्ध भगवान् अपने दिव्य नेत्रोंसे प्रति दिन संसारको छह बार देखते हैं। वे दश बल, ग्यारह बुद्धधर्म, और चार वैशारद्य सहित होते हैं। वर्तमान बुद्ध चौबीस होते हैं। इन बुद्धोंके अलग-अलग बोधिवृक्ष रहते हैं । बुद्ध दो प्रकारके होते हैं-प्रत्येकबुद्ध और सम्यक्संबुद्ध । सम्यकसंबुद्ध अपने पुरुषार्थ द्वारा बोधि प्राप्त करके उसका संसारको उपदेश देते हैं। गौतम सम्यक्संबुद्ध थे। प्रत्येकबुद्ध भी अपने पुरुषार्थसे बोधि प्राप्त करते हैं, परन्तु वे संसारमें बोधिका उपदेश नहीं करते, वन आदि किसी एकांत स्थानमें रहकर मुक्तिसुखका अनुभव करते हैं । प्रत्येकबुद्ध बुद्धसे हरेक बातमें छोटे होते हैं, और वे बुद्धके समय नहीं रहते । जो पटिसंभिदा, अभिज्ञा, प्रज्ञा आदिसे विभूषित होते हैं, उन्हें अर्हत् कहते हैं। अर्हत्को खीनासव (क्षीणाश्रव ) कहा है। अर्हत् फिरसे संसारमें जन्म नहीं लेते। गौतम स्वयं अर्हत् थे। बुद्ध स्वयं अपने पुरुषार्थसे निर्वाण प्राप्त करते है, और अर्हत् बुद्ध के पास शिक्षण ग्रहण करके निर्वाण जाते हैं, यहीं दोनोंमें अन्तर है । जो अनेक जन्मोंके पुण्य-प्रतापसे आगे चलकर बुद्ध होनेवाले हैं, उन्हें बोधिसत्व कहते हैं । अर्हत् वीतराग होते हैं, और बोधिसत्वका हृदय करुणासे परिपूर्ण रहता है। बोधिसत्व प्रत्येक प्राणोके निर्वाणके लिये प्रयत्नशील रहते हैं, और जब तक सम्पूर्ण जीवोंको निर्वाण नहीं मिल जाता, तब तक उनकी प्रवृत्ति जारी रहती है। बोधिसत्व जीवोंके प्रति करुणाक। प्रदर्शन करनेके लिए पाप करने में भी नहीं हिचकते, और नरकमें जाकर नारको जीवोंका उद्धार करते हैं। १. महावीर भगवान के निर्वाणके बाद गौतम, सुधर्मा और जम्बूस्वामी ये तीन केवली हुए। जम्बूस्वामीके बाद दिगम्बर परम्पराके अनुसार विष्णु, नन्दि, अपराजित, गोवर्धन और भद्रबाहु ये पांच, तथा श्वेताम्बर परम्पराके अनुसार प्रभव, शय्यंभव, यशोभद्र, सम्भूतविजय, भद्रबाहु और स्थूलभद्र ये छह श्रुतकेवली माने जाते हैं स्थूलभद्रको श्रुतकेवलियोंमें नहीं गिननेसे श्वेताम्बर परम्पराके अनुसार भी पांच श्रुतकेवली माने गये हैं। देखिये जगदीशचन्द्र जैन, जैन आगम साहित्यमे भारतीय समाज, पृ० १७-२० । २. गोम्मटसार जीव. १० टीका। ३. पातंजल योगसूत्र १-२४,५१ भाष्य । ४. मज्झिमनिकाय ब्रह्मायुसुत्त । ५. दीपंकर, कोण्ड, मंगल, सुमनस, रेवत, सोभित, अनोमदस्सिन्, पदुम, नारद, पदुमुत्तर, सुमेघ, सुजात, पियदस्सिन्, अत्थदस्सिन्, धम्मदस्सिन्, सिद्धत्थ, तिस्स, पुस्स, विपस्सिन्, सिखिन्, वेस्सभू, ककुसंघ, कोणागमन और कस्सप। ६. देखिये कर्न ( Kern ) को Mannual of Buddhism अ. ३ पृ. ६०; तथा सद्धर्मपुण्डरीक अ. २४; बोधिचर्यावतार, बोधिचित्तपरिग्रह नामक तृतीय परिच्छेद ।
SR No.009653
Book TitleSyadvada Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1970
Total Pages454
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size193 MB
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