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________________ श्रीमद्राजचन्द्रजैनशास्त्रमालायां मुपममुपमा आदि प्रथमके तीन कालोंमें भोगभूमि रहती है । भोगभूमिकी भूमि दर्पणके समान मणिमय, और चार अंगुल ऊँचे स्वादु और सुगंधित कोमल तृणोंसे युक्त होती है । यहाँ दूध, इक्षु, जल, मधु और घृतने परिपूर्ण बावड़ी और तालाव बने हुए हैं । भोगभूमिमें स्त्री और पुरुपके युगल पैदा होते हैं । ये युगलिये ४९ दिन में पूर्ण यौवनको प्राप्त होकर परस्पर विवाह करते हैं। मरनेके पहले पुरुपको छींक और स्त्रीको जंभाई आती हैं | मुपमदुःपमा नामके तीसरे कालमें पल्यका आठवां भाग समय वाकी रहनेपर क्षत्रिय कुलमं चौदह कुलकर उत्पन्न होते हैं। चौथे कालमें चोवीस तीर्थंकर, वारह चक्रवर्ती, नो नारायण, नौ प्रतिनारायण, और नौ बलभद्र —— ये तरेसठ शलाकापुरुप जन्म लेते हैं । दुःपमा नामका पाँचवाँ काल महावीरका वीर्यकाल कहा जाता है। इस कालमें कल्की नामका राजा उत्पन्न होता है। कल्की उन्मार्गगामी होकर जैनधर्मका नाश करता है। पंचम कालके इक्कीस हजार वर्षके समयमें एक-एक हजार वर्ष बाद इक्कम कल्की पैदा होते हैं। अंतिम जलमंथन नामक कल्की जैनधर्मका समूल नाश करनेवाला होगा । धर्मका नाग होनेपर सब लोग धर्ममे विमुख हो जायेंगे । दुःपमदुःषमा नामके छठे कालमें संवर्तक नामकी वायु पर्वत, वृक्ष, पृथ्वी आदिको चूर्ण करेगी। इस वायुसे समस्त जीव मूर्छित होकर मरेंगे । इस समय पवन, अत्यंत शोत, क्षाररस, विप, कठोर अग्नि, धूल और घूँ एकी ४९ दिन तक वर्षा होगी, तथा विष और अग्निको वर्षामे पृथ्वी भस्म हो जायेगी । इस समय दयावान विद्याधर अथवा देव, मनुष्य आदि जीवोंके युगलोंको निर्वाच स्थानमें ले जाकर रख देंगे। उत्सर्पिणी कालके आनेपर फिरसे इन जीवोंसे सृष्टिकी परम्परा चलेगी । २८२ ब्राह्मण ग्रंथों में सत्य ( कृत ), त्रेता, द्वापर, और कलि ये चार युग बताये गये हैं । इन युगोंका प्रमाण क्रमसे १७२८००० वर्ष, १२९६०० वर्ष, ८६४००० वर्ष और ४३२००० वर्ष है । कृतयुगमें ध्यान, त्रेतामें ज्ञान, द्वापरमें यज्ञ और कलियुगमें दानकी श्रेष्ठता होती हैं । इन युगों में क्रमसे ब्रह्मा, रवि, विष्णु, और रुद्रका आधिपत्य रहता है । सत्ययुग में धर्मके चार पैर होते हैं । इनमें मत्स्य, कूर्म, वराह, और नृसिंह ये चार अवतार होते हैं । इस युगमें मनुष्य अपने धर्म में तत्पर रहते हुए शोक, व्याधि, हिंसा, और दंभसे रहित होते हैं । यहाँ इक्कीस हाथ- परिमाण मनुष्यकी देह और एक लाख वर्षकी उत्कृष्ट आयु होती है । इस युगके निवासियोंकी इच्छा-मृत्यु होती है। इस युगमें लोग सोनेके पात्र काममें लाते हैं । त्रेतामें धर्म तीन पैरोंसे चलता है। इस समय वामन, परशुराम और रामचन्द्र ये तीन अवतार होते हैं । यहाँ चोदह हाथ-परिणाम मनुष्यकी देह और दस हजार वर्षकी उत्कृष्ट आयु होती है । इस युगमें चाँदी के पात्रोंसे काम चलता है। इस समय लोगोंका कुछ क्लेश बढ़ जाता है । ब्राह्मण लोग वेद वेदांगके परगामी होते हैं । स्त्री पतिव्रता और पुत्र पिताकी सेवा करनेवाले होते हैं । द्वापरयुगमें धर्मके केवल दो पैर रह जाते हैं । इस युगमें कुछ लोग पुण्यात्मा और कुछ लोग पापात्मा होते हैं । कोई बहुत दुखी होते हैं और कोई बहुत घनी होते हैं । इस युग में कृष्ण और बुद्ध अवतार लेते हैं। मनुष्योंका देह सात हाथका और एक हजार वर्षकी उत्कृष्ट आयु होती है । लोग ताँबे के पात्रोंमें भोजन करते हैं । कलियुगके आनेपर धर्म केवल एक पैरसे चलने लगता है । इस युगमें सब लोग पापी हो जाते हैं । ब्राह्मण अत्यन्त कामी और क्रूर हो जाते हैं । तथा क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र अपने कर्तव्यसे च्युत होकर पाप करने लगते हैं । कलियुगमें कल्किका अवतार होता है । मनुष्यका शरीर साढ़े तीन हाथका और उत्कृष्ट आयु एकसो पाँच वर्षकी होती है ।" वौद्ध लोगोंने अन्तरकल्प, संवर्तकल्प, विवर्तकल्प, महाकल्प आदि कल्पोंके अनेक भेद माने हैं । आदिके कल्पमें मनुष्य देवोंके समान थे। धीरे-धीरे मनुष्योंमें लोभ और आलस्यको वृद्धि होती है, लोग वनकी ओपत्र और धान्य आदिका संग्रह करने लगते हैं । वादमें मनुष्योंमें हिंसा, चोरी आदि पापोंकी १. त्रिलोकसार ७७९-८६७; तथा लोकप्रकाश २८ वीं सर्ग इत्यादि । २. कूर्मपु. अ. २८; मत्स्यपु. अ. ११८; गरुडपु. अ. २२७ ॥
SR No.009653
Book TitleSyadvada Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1970
Total Pages454
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size193 MB
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