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________________ 13 तीसरे न्याय-वैशेपिक परिशिष्टमें ईश्वर संबंधी चर्चा विशेष रूपसे उल्लेखनीय है । चौथे सांख्य योग परिशिष्ट में सांख्य, योग, जैन और बौद्धदर्शनोंकी तुलना करते समय जो ब्राह्मण और श्रमण संस्कृति संबंधी भेद दिखाया गया है, वह ऐतिहासिक दृष्टिसे महत्त्वपूर्ण है। पांचवें परिशिष्टमें मीमांसक और जैनोंकी तुलना, छठेमें शंकरके मायावादको विज्ञानवाद और शून्यवादले तुलना, सातवें में चार्वाकमत और आनन्दघनजीका उसे जिनभगवान की कूखवताना, और आठवें परिशिष्ट में आजीविक सम्प्रदाय-1 - ध्यानपूर्वक पढ़ने योग्य हैं । ६ अनुक्रमणिका - इस संस्करणमें नीचे लिखी तेरह अनुक्रमणिकायें दी गई हैं ( १ ) स्याद्वादमंजरी के अवतरण - इन अवतरणोंमें कई अनुपलब्ध अवतरणोंकी खोज पहली बार की गई है। अवतरण प्रायः सेठ मोतोलाल लाधाजी ओर प्रो. ध्रुवकी स्याद्वादमंजरीके आधारसे लिये गये हैं । (२) स्याद्वादमंजरी में निर्दिष्ट ग्रंथ और ग्रंथकार (३) स्याद्वादमंजरी ( अन्ययोगव्यवच्छेदिका ) के श्लोकोंकी सूची ( ४ ) स्याद्वादमंजरी ( अन्ययोगव्यवच्छेदिका ) के शब्दोंकी सूची (५) स्याद्वादमंजरी के न्याय ( ६ ) स्याद्वादमंजरीके श्लोकोंकी सूची (७) स्याद्वादमंजरीको संस्कृत, तथा हिन्दी टिप्पणियोंके ग्रंथ और ग्रंथकार ( ८ ) अयोगव्यवच्छेदिका के श्लोकोंकी सूची ( ९ ) अयोगव्यवच्छेदिकाके शब्दोंकी सूची (१०) अयोगव्यवच्छेदिका की टिप्पणी में उपयुक्त ग्रंथ ( ११ ) परिशिष्टके शब्दोंकी सूची ( १२ ) परिशिष्ट में उपयुक्त ग्रंथ (१३) सम्पादन में उपयुक्त ग्रंथ उपसंहार जिस समय मैं वनारस हिन्दू युनिवर्सिटी में एम. ए. में आदरणीय प्रो. फणिभूषण अधिकारीसे स्याद्वादमंजरी पढ़ता था, उस समय मुझे उनके साथ दर्शनशास्त्र के अनेक विषयोंपर चर्चा करनेका अवसर प्राप्त हुआ था । उसी समय से मेरी इच्छा थी कि मैं स्याद्वादमंजरीपर कुल लिखकर जैनदर्शन तथा राष्ट्रभाषाकी सेवा करूँ । संयोगवश पिछले वर्ष मेरा बम्बई में आना हुआ, और मैंने रायचन्द्र जैनशास्त्रमाला के व्यवस्था - पक श्रीयुत मणीलाल रेवाशंकर जगजीवन झवेरीको स्वीकृतिपूर्वक स्याद्वादमंजरीका काम आरंभ कर दिया । इस ग्रंथके आरंभ से इसकी समाप्तितक अनेक सज्जनोंने मुझे अनेक प्रकारसे सहयोग दिया है, उसके लिये मैं . उन सबका आभार मानता हूँ । स्नेही श्रीयुत दलसुख डाह्याभाई मालवणियाने स्याद्वादमंजरीके संस्कृत और उसके अनुवादके बहुतसे प्रूफका संशोधन किया है । बंधु साहित्यरत्न पं. दरबारीलालजा न्यायतीर्थने इस ग्रंथ संबंधो अमेक प्रश्नोंको चर्चा में रस लेकर अपना बहुमूल्य समय खर्च किया है। स्थानीय बुद्धिस्ट सोसायटीके मंत्री के. ए. पाध्ये बी. ए., एलएल. बी., वकोल वम्बई हाईकोर्टने स्थानीय एशियाटिक लायब्ररीमें मुझे हरेक प्रकारकी सुनिवा दिलवाकर तथा एन. आर. फाटक बी. ए. ने अपनी लाइब्रेरीमेंसे बहुतसी पुस्तकें देकर सहायता की है । रायचन्द्रशास्त्रमाला के मैनेजर श्रोत कुन्दनलालजीने आवश्यकीय पुस्तकों आदिका प्रबन्ध किया है। पं. नाथूरामजी प्रेमी, मुनि हिमांशुविजयजी, मोहनलाल दलीचंद देसाई बी. ए., एलएल. बो., तथा मोहनलाल भगवानदास झवेरी एम. ए. सोलिसीटर आदि सज्जनोंने भी सहानुभूतिका प्रदर्शन किया है । मेरी पत्नी कमलश्रीने हिन्दोके प्रूफ पढ़वानेमें और अनुक्रमणिका बनाने में सहायता की है। मैं इन सब महानुभावोंका हृदय से आभार मानता हूँ। मुनि मोहनलाल सेंट्रल जैन लाइब्रेरी, हीराचन्द गुमानजी जैन वोडिंग लाइब्रेरी, ऐलक पन्नालाल सरस्वती भवन तथा न्यू भारत प्रिंटिंग प्रेसके अध्यक्षोंने अपना पूर्ण सहयोग
SR No.009653
Book TitleSyadvada Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1970
Total Pages454
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size193 MB
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