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________________ २०८ २०९ २१३ २५८ विषय पृष्ठ मांस, मद्य और मैथुनमें जीवोंकी उत्पत्ति स्याद्वादके सात भंग सकलादेश और विकलादेश रूप सप्तभंगो श्लोक २४ अनेकांतवादमें विरोध आदि दोपोंका निराकरण २२२-२३० श्लोक २५ अनेकांतवादके चार भेद २३१ श्लोक २६ एकान्त नित्यवाद और एकान्त अनित्यवादका खंडन २३३ नित्य और अनित्यवादियोंका परस्पर खंडन २३३ श्लोक २७ एकान्तवादमें सुख-दुख आदिका अभाव २३६ श्लोक २८ दुर्नय, नय और प्रमाणका स्वरूप २४०-२५५ नयका स्वरूप और उसके नैगम आदि सात भेद २४२ प्रमाण और प्रमाणके भेद २५१ एकसे लेकर नयके असंख्यात भेद २५३ नय और प्रमाणमें अन्तर २५३ नैगम नयके भिन्न भिन्न लक्षण और उसके भेद २५४ द्रव्याथिक और पर्यायाथिक नयोंके विभागमें मतभेद (टि.) २५५ (टि०) श्लोक २९ जीवोंकी अनन्तता २५६ पतंजलि, अक्षपाद आदि ऋषियों द्वारा जीवोंको अनन्यताका समर्थन २५७ पृथिवी आदिमें जीवत्वकी सिद्धि निगोदका स्वरूप २५९ गोशाल, अश्वमित्र और स्वामी दयानन्दकी मोक्षके विपयमें मान्यता जीवोंके पदा मोक्ष प्राप्त करते रहते हुए भी संसार जीवोंसे खाली नहीं होता २६० गोशाल, महीदास, मनुस्मृति और महाभारतकार द्वार वनस्पतिमें जीवत्वका समर्थन २६१ आधुनिक विज्ञानद्वारा पृथिवीमें जीवत्वका समर्थन २६१ श्लोक ३० स्याद्वाददर्शनमें जैनेतर दर्शनोंका समन्वय २६२ श्लोक ३१ भगवानके यथार्थवादित्वका समर्थन २६५ श्लोक ३२ जिन भगवानसे ही जगत के उद्धारकी शक्यता २६७ प्रशस्ति २६९ अयोगव्यवच्छेदिका २७१-२७७ परिशिष्ट २७९ जैन परिशिष्ट दुःषमार केवली २८३ अतिशय एवं व्योमापि.... २८६ अ पुनर्वन्ध २८७ प्रदेश २८८ केवलीसमुद्धात २८९ २९० २६० २८१ २८१ २८५ लोक
SR No.009653
Book TitleSyadvada Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1970
Total Pages454
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size193 MB
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