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________________ किरातार्जुनीयम् भारवि का समय-अन्य कवियों की ही भाँति भारवि के समय का निा फरना कठिन है । तथापि १-दक्षिण के ऐहोल शिलालेख में कालिदास और भारवि का नामोल्ले हुआ है। इस शिलालेख का समय ६३४ ई० है । २–गुमरेड्डीपुर के शिलालेख से हमें पता चलता है कि राजा दुर्विनीत किरातार्जुनीय के पन्द्रहवें सर्ग पर टीका लिखी थी। नवीनतम अन्वेषणों दुर्विनीत का राज्यकाल ५८० ई० के लगभग ठहरता है। ३-भारवि के किरातार्जुनीय का उद्धरण जयादित्य की 'काशिकावृत्ति' उपलब्ध होता है। मैक्समूलर 'काशिका' का समय ६६० ई० मानते हैं 'काशिफा' से बहुत पहले ही किरातार्जुनीय इतना प्रसिद्ध हो गया होगा कि उस उद्धरण दिया गया । ४-सप्तमी शताब्दी में होने वाले बाणभट्ट ने अपने हर्षचरित में अपने पूर्व के प्रायः समस्त कवियों का उल्लेख किया है, किन्तु भारवि का नामोल्ले नहीं हुआ है । कीथ महोदय के अनुसार बाणभट्ट ने भारवि का उल्लेख इसलि नहीं किया कि उनके समय तक भारवि ने इतनी ख्याति प्राप्त नहीं की थी। इनका उल्लेख हो सके। कीथ महोदय ने भारवि का समय ५५० ई० माना है ५ जैकोबी, मैक्डोनल, बलदेव उपाध्याय, चन्द्रशेखर पाण्डेय इत्यादि अने विद्वानों ने भारवि का सभय ६०० ई० के लगभग माना है । इसके अतिरिक्त भी अनेक विद्वानों ने भारवि का समय भिन्न-भिन्न माना है इन सब विचारों से यही निर्णय होता है कि भारवि का समय ५५० ई० से ६० ई० तक माना जा सकता है । भारवि का एकमात्र ग्रन्थ-किरातार्जुनीय किरातार्जुनीय का कथानक महाभारत से लिया गया है। इसमें १८ सर्ग तथा इसमें अस्त्र-प्राप्ति के लिए तपस्या करने वाले अर्जुन और किराताधिपति
SR No.009642
Book TitleKiratarjuniyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVibhar Mahakavi, Virendra Varma
PublisherJamuna Pathak Varanasi
Publication Year1978
Total Pages126
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size81 MB
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