SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भूमिका राजनीतिशास्त्र, नोतिशास्त्र और लोकव्यवहार का निरूपण भारवि राजनीतिशास्त्र और नीतिशास्त्र के प्रकाण्ड पण्डित हैं तथा उनका लोकव्यवहार का ज्ञान अत्यन्त समृद्ध है। अनेक राजाओं के साथ उनका घनिष्ट सम्बन्ध था और उन्होंने अनेक राजदरबारों को सुशोभित किया। किरात र्जुनीय में स्थल-स्थल पर उनके राजनीतिविषयक ज्ञान की झलक मिलती है। उन्होंने बड़ी कुशलता के साथ राजनीति के दुरूह तत्त्वों का निरूपण काव्य के माध्यम से किया है। उनकी सूक्तयों में नीति तथा लोकव्यवहार के तथ्यों का सुन्दर निरूपण हुआ है। किरातार्जुनीय का प्रारम्भ ही राजनैतिक तथ्यों से होता है। वनेचर की उक्तियों के माध्यम से राजनीति, नीति और लोकव्यवहार के अनेक तथ्यों का उद्घाटन हुआ है। प्रत्येक श्लोक महाकवि की नीतिकुशलता और व्यवहारकुशलता को प्रगट करता है। द्रौपदी की ओजस्वी उक्तियों में राजनीति और नीति के गम्भीर तत्वों का वर्णन हुआ है। द्वितीय सर्ग भी राजनैतिक तथ्यों से परिपूर्ण है। भीम अपने औजस्वी भाषण के द्वारा युधिष्ठिर को दुर्योधन से युद्ध के लिए उकसाते हैं परन्तु महाराज युधिष्ठिर एक वयोवृद्ध राजनीतिज्ञ की भाँति अपने भाई को समझाते हैं। वे सान्त्वना देते हैं, धैर्य की महिमा बखानते हैं। उनकी नीति है "प्रतीक्षा करो और देखो।" सहसा विधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम् । वृणुते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव सम्पदः ।। २ । ३० १०-अमर्षशून्येन जनस्य जन्तुना न जातहार्दैन न विद्विषादरः । ३४ ११-विचित्ररूपाः खलु चित्तवृत्तयः । ३७ १२-परैरपासितवीर्यसम्पदा पराभवोऽप्युत्सव एव मानिनाम् । ४१ १३-शमेन सिद्धिं मुनयो ने भूभृतः । ४२ १४--निराश्रया हन्त हता मनस्विता । ४३ १५-अरिषु हि विजयार्थिनः क्षितीशा विदधति सापधि सन्धिदूषणानि । ४५
SR No.009642
Book TitleKiratarjuniyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVibhar Mahakavi, Virendra Varma
PublisherJamuna Pathak Varanasi
Publication Year1978
Total Pages126
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size81 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy