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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यही है जिंदगी ७७ कौन कोल्हू में हमें पीसने आता है? ऐसा कोई संकट... कोई उपद्रव नहीं आ रहा है... न ऐसे उपसर्ग सहन करने के लिए हम सामने चलकर जाते हैं। किसी ने कटु शब्द सुना दिया... मानो कि कालचक्र का आघात हो गया! शरीर में सामान्य बीमारी आ गई, मानो किसी ने शरीर पर अंगारे बरसा दिये! किसी ने कभी मामूली अपमान कर दिया, मानो कि शरीर की चमड़ी उतर गई... कितनी निर्बलता आ गई है मन में? कितनी निःसत्त्व बन गई है? ऐसी निःसत्त्व आत्मा क्या मोक्ष पा सकती है? निःसत्त्वों के लिए मोक्ष कहाँ है? उनके लिये तो नरक तैयार है। जब तक प्रतिकूलताएँ सहन करने की क्षमता नहीं आती है तब तक कोई धर्मआराधना फलवती नहीं बन सकती। मगध-सम्राट श्रेणिक को उसके ही प्रिय पुत्र ने कारावास में बन्द कर दिया था न? इतना ही नहीं, पुत्र पिता को चाबूक से प्रतिदिन बुरी तरह पीटता था...। उस समय श्रेणिक ने कितनी समता रखी थी? कितना धैर्य रखा था? कोई आक्रोश नहीं... कोई रूदन नहीं... कोई फरियाद नहीं! कितना सत्त्व होगा उस महापुरुष में? कैसी अद्भुत ज्ञानदृष्टि होगी उस राजपुरुष में? परमात्मा महावीर देव की सेवा ने क्या उसमें यह सत्त्व पैदा कर दिया होगा? परमात्मा के प्रति उनकी जो अविचल श्रद्धा थी, उस श्रद्धा ने क्या उसमें ज्ञानदृष्टि जाग्रत कर दी होगी? समता से, सहजता से कष्टों को सहन करने की क्षमता आ जाये, बस, वही परमात्मा की परम कृपा है। ऐसी कृपा का पात्र बन जाऊँ... तो जीवन सफल है, धर्मआराधना सफल है। For Private And Personal Use Only
SR No.009641
Book TitleYahi Hai Jindgi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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