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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यही है जिंदगी ७५ भी नेमिकुमार राजीमति के पास शादी करने के बहाने से गये और ज्यों राजीमती ने नेमिकुमार को देख लिया, नेमि ने अपना रथ लौटा दिया। भक्त कविराज ज्ञानविमलसूरि ने इस प्रीति-संबंध को 'धन्य कहानी' बताकर प्रसन्नता व्यक्त की है। राजीमति शुं पूरवभवनी प्रीति भली परे पाली रे... पाणिग्रहण संकेते आवी... तोरणथी रथ वाली रे... नेमि निरंजन नाथ... राजीमति ने दुनिया को प्रेम का एक महान और अद्भुत आदर्श प्रदान किया है। प्रीति केवल भोग में ही नहीं होती, त्याग में भी प्रीति हो सकती है। नेमिकुमार ने संसार का त्याग कर श्रमणत्व को स्वीकार किया, तो राजीमति ने भी उन्हीं नेमिनाथ से... नेमिनाथ के ही करकमलों से श्रमणत्व को स्वीकार किया। भगवान नेमिनाथ का अखंड स्नेह राजीमति ने पाया । नेमिनाथ की अमर आत्म-ज्योति में राजीमति की आत्म-ज्योति विलीन हो गई। या तो अपनी आत्मा में से ही ज्ञानानन्द... सहजानन्द प्राप्त करें या फिर परमात्मा से परमानन्द प्राप्त करने का जीवन पर्यंत प्रयास करते रहें। इसके अलावा किसी से भी आनंद पाने का प्रयत्न मत करना। दुनिया से ही आनंद पाना हो तो अनंत आकाश से पाना... अनंत आकाश में मुक्त उड्डयन करते विहंगमों से पाना... उछलते सागर से पाना... निरंतर बहती नदियों से पाना... हरे-भरे फल-फूलों वाले वृक्षों से पाना...। प्रकृति की गोद में आनंद के अमृत को खोजना... प्रकृति की गोद में ही हर पल आनंद की अमृतधारा फूटती है... प्रसन्नता छलछलाती है... क्योंकि उसमें राग-द्वेष की आग नहीं है। For Private And Personal Use Only
SR No.009641
Book TitleYahi Hai Jindgi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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