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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यही है जिंदगी ६९ से भी आँसू टपक रहे थे... सारी प्रकृति शोकमग्न हो गई थी... एक ज्ञानी का परम ज्ञानी के प्रति अपार स्नेह... एक महात्मा का एक परमात्मा के प्रति निःसीम प्रेम... आह और आँसूओं में अनुभूत हो रहा था...| गौतम की अनंत लब्धियों के पुजारी लोग... गौतम की गुरु-प्रीति... परमात्म-प्रीति को कैसे पहचान सकते हैं!! 'परमात्मप्रेमी गौतमस्वामी को मेरा नमस्कार हो।' ऐसा कौन लिखता है? ऐसा नमस्कार कौन करता है? 'अनंत लब्धिनिधान गौतमस्वामी' को सब लोग नमस्कार करते हैं। यह नमस्कार गौतम को नहीं है... यह नमस्कार तो उनकी लब्धियों को है | यह अर्थलोलुपता की ही अभिव्यक्ति है। ___ कहते हैं कि परमात्मा के प्रति गौतम को राग था इसलिए गौतम को केवलज्ञान नहीं हुआ... उनका राग केवलज्ञान में प्रतिबन्धक था। गौतम के पास केवलज्ञानी थे - परमात्मा थे, उनको केवलज्ञान से क्या मतलब था? परमात्मप्रेमी को परमात्मपद की चाह नहीं होती है। उनको तो परमात्मा की ही चाह होती है। गौतम का राग परमात्मा के प्रति था। राग का विषय शुद्ध था, सर्वश्रेष्ठ था, इसीलिए प्रशस्त था। गौतम की परमात्म-प्रीति निष्काम थी, निरूपायिक थी... इसीलिए तो उनकी परमात्म-प्रीति ने अल्प समय में ही उनका परमात्मा से अभेद मिलन करवा दिया! नूतन वर्ष के प्रभात में गौतम को 'केवलज्ञान' प्राप्त हुआ। केवलज्ञान के प्रकाश में गौतम ने सिद्धशिला पर परमात्मा महावीर को प्रत्यक्ष देख लिया! अब वह दर्शन शाश्वत था! अब वह इन्द्रियातीत मिलन शाश्वत था। ___ एक अद्भुत परमात्मप्रेमी की स्मृति का पर्व बन गया नूतन वर्ष! गौतमस्वामी जैसी परमात्म-प्रीति जाग्रत हो जाय आत्मा में तो!! दूसरा कुछ नहीं चाहिए... न लब्धियाँ चाहिए... न केवलज्ञान चाहिए! जन्म-जन्म तक हे प्रभो! मुझे तेरे चरणों का दास बनाना... तेरे चरणकमल की सेवा करता रहूँ... प्रेमभक्ति के आँसूओं का अभिषेक करता रहूँ...! For Private And Personal Use Only
SR No.009641
Book TitleYahi Hai Jindgi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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