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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यही है जिंदगी २. प्रीत, एक परमात्मा के साथ ई ८. प्रीत, एक परमात्मा के साथ रागी और द्वेषी जीवों को खुश करने के लिये कितना मूल्यवान समय बिता दिया? मानवजीवन का समय व्यर्थ गवाँ दिया... यह कोई मामूली अपराध नहीं... यह कोई छोटा-सा दुष्कृत्य नहीं, यह बड़ा दुष्कृत्य है। वीतराग परमात्मा से प्यार नहीं किया, उनको खुश करने का कोई प्रयत्न नहीं किया। कैसे उनसे प्यार करता? उनकी पहचान ही नहीं थी। उनके मंदिर में अवश्य जाता था, उनकी मूर्ति का दर्शन भी करता था... स्तुतिप्रार्थना भी करता था, परन्तु उनसे प्यार नहीं हुआ, उनको खुश करने का विचार भी नहीं आया... कैसा घोर दुर्भाग्य था मेरा? मुझे परमात्मा से कोई मतलब ही नहीं था! मुझे मतलब था दुनिया से! मैं समझता था कि 'दुनिया में जीने के लिए दुनिया को खुश रखना चाहिए | दुनिया खुश होगी तो मुझे मेरे मनचाहे सुख मिल जायेंगे। दुनिया नाराज होगी तो दुनिया से मुझे सुख नहीं मिलेंगे।' मैंने मेरी दुनिया को खुश रखने का भरसक प्रयत्न किया। इतना ही नहीं, जिनसे मुझे सुख की आशा नहीं रही, जिन-जिन से मुझे कोई मतलब नहीं रहा, उनको खुश करने का प्रयत्न छोड़ दिया । नयी दुनिया को खोजने लगा... मिल गई कोई छोटी-सी दुनिया... तो उसे खुश करना शुरू कर दिया...! मैंने दुनिया का त्याग नहीं किया, दुनिया का परिवर्तन ही चाहता रहा... आवर्तन और परिवर्तनों में उलझता गया...| परमात्म सृष्टि से कोई नाता नहीं रहा, कोई लगाव नहीं रहा, कोई विचार भी नहीं रहा। 'सकल विश्व में स्नेह और प्रेम करने योग्य परमात्मा ही है, यह बात समझा ही नहीं था। समझाने वाला कोई मिला होगा - आज याद नहीं है, परन्तु मैं समझने वाला ही कहाँ था!! परमात्मा को भूलने का कितना बड़ा दुष्कृत्य मेरे जीवन में हो गया? दुनिया को खुश करने का जितना प्रयत्न मैंने किया, उतना प्रयत्न नहीं... उससे आधा भी नहीं... थोड़ा-सा भी प्रयत्न परमात्मा को खुश करने के लिए करता, परमात्मा से स्नेह बाँधता... तो आज मेरी आत्मा कैसा स्वाधीन अविनाशी सुख पा लेती! दुनिया के लोग... रागी-द्वेषी लोग मेरे प्रति खुश हो या नाखुश... मेरे प्रति For Private And Personal Use Only
SR No.009641
Book TitleYahi Hai Jindgi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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