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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यही है जिंदगी २६६ __- उत्तम पुरुषों के गुणों की, सत्कार्यों की सुगंध, प्रायः उनकी मृत्यु के बाद ज्यादा फैलती है! ___- समताभाव से जिन्होंने कुचला जाना पसंद किया, उनके गीत हजारों वर्ष तक दुनिया गाती रही है और गाती रहेगी। - समताभाव का स्रोत है, विधेयात्मक चिंतन-'पॉजीटीव थिंकिंग!' - वे खंधक मुनि! राजा के सेवकों ने जाकर कहा : 'हमारे राजा की आज्ञा है आप के शरीर की चमड़ी उतार लेने की...।' ___- मुनिराज ने उसी समय कह दिया : 'भैया! तुम्हारा उपकार मानता हूँ। ऐसा उपकार तो सहोदर भी नहीं कर सकता। उतारो शरीर की चमड़ी... तुम कहो वैसे खड़ा रहूँ... तुम्हें चमड़ी उतराने में सरलता रहे...! - यह था मुनिराज का Positive thinking! विधेयात्मक चिंतन! ऐसा चिंतन वही मनुष्य कर सकता है, जो हर परिस्थिति के लिये तैयार होता है। ___ - सुख और दुःख जिसको समान लगते हैं! सुख से लगाव नहीं, दुःख से द्वेष नहीं! - हर बात में कोई शुभ अंश छुपा हुआ होता है... जो मनुष्य उस अंश को देख लेता है, वह निर्धान्त होकर, हर परिस्थिति को स्वीकार कर लेता है। ___- औरंगजेब की सेना मंदिरों का ध्वंस करती हुई गुजरात में पहुँची। एक मंदिर में वृद्ध पुजारी था। सेनापति ने कहा : 'हम मंदिर तोडेंगे।' पुजारी ने सेना देखी। 'ये लोग मंदिर तोड़ेंगे ही,' समझ लिया और निर्भयता से कहा : 'तुम्हें तोड़ना है तो भले तोड़ो मंदिर, मुझे भी खुशी होगी! क्योंकि एक मंदिर टूटेगा... अनेक मंदिर पैदा होंगे। एक-एक पत्थर में से एक-एक मंदिर पैदा होगा!' - ऐसा ही हुआ। हजारों नये मंदिर बन गये! निषेधात्मक चिंतन, भय-चिंता-वेदना पैदा करता है। क्यों करें वैसे विचार? जीवन-व्यवहार में विधेयात्मक चिंतन का प्रयोग करेंगे! For Private And Personal Use Only
SR No.009641
Book TitleYahi Hai Jindgi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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